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________________ viii / स्वरूप-संबोधन- परिशीलन मंगल-भावना वर्द्धमान स्वामी के वर्तमान शासन में बुन्देलखण्ड मध्यप्रदेश की धरा पर कुंडलगिरी (कुण्डलपुर ) तीर्थ है, जहाँ से श्रीधर केवली ने निर्वाण - श्री की प्राप्ति की थी, ऐसी पवित्र भूमि पर विराजे नाभेय आदीश्वर स्वामी बड़े बाबा जन-जन के हृदय-स्थल पर विराजे हैं, जिनके चरण-कमल बुन्देली के देवता आदिनाथ स्वामी के चरण-निश्रा में मुझ अल्पधी ने आगम के सारभूत स्वरूप - सम्बोधन" ग्रन्थ का परिशीलन लिखने का मंगलाचरण किया, गुरु- प्रसाद से धर्म-प्रयाण-नगरी व संस्कारधानी जबलपुर के आदिनाथ जिनालय में अक्षयतृतीया वीर निर्वाण सम्वत् 2534 को ग्रन्थ का परिशीलन लिखना प्रांरभ किया था; जहाँ सिद्ध-भूमि की चट्टान प्रशस्त है, आगे चन्द्रनाथ विराजे हैं, वहीं यह पश्चिम भाग में आज अष्टम तीर्थ चन्द्रप्रभु स्वामी के पाद-मूल में इस श्रमणगिरी (सोनागिरी) सिद्ध क्षेत्र पर "स्वरूप- सम्बोधन - परिशीलन" पूर्ण हुआ । अन्त में भगवान् चन्द्रप्रभु स्वामी के चरणों में वंदना करते हुए निवेदन करता हूँ- हे नाथ! मेरा ज्ञान- चारित्र पूर्ण चन्द्र के तुल्य निरंतर वर्धमान रहे, जहाँ संयम का प्रारंभ किया था, वहाँ आज ग्रन्थ पूर्ण हुआ । इस ग्रंथ- परिशीलन में मेरा कुछ नहीं है, गुरु- मुख से व पूर्वाचार्यों की परंपरा से प्राप्त जो अर्हत्-सूत्र पढ़े थे, वही इस परिशीलन में हैं, मेरा स्वयं का कुछ नहीं है । ग्रंथराज महोदधि में कौन पार पा सकता है, पर मात्र श्रुत-भक्ति से युक्त होकर अशुभोपयोग से आत्म-रक्षा एवं बुद्धि की प्रशस्तता हेतु निर्जरार्थ वाग्वादिनि की साक्षी - पूर्वक यह ग्रंथ लिखा है, अन्त में ज्ञानमूर्ति जिनवाणी माँ के पाद में इस विनय के साथ क्षमाप्रार्थी हूँ कि हे भारती! अक्षर, पद व मात्रा में किञ्चित् भी इस अल्पधी के द्वारा जो भी कमी रह गई हो, तो उसके लिए आप मुझे क्षमा करें, पुनः आचार्यप्रवर श्री भट्ट अकलंक स्वामी के चरणारविन्द में नमोस्तु त्रिभक्ति-पूर्वक करता हूँ व यह अनुनय करता हूँ कि हे नाथ! आपकी कृति पर जो लिखा है, वह आपका है, मुझ अल्पज्ञ का क्या हो सकता
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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