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________________ श्लो. : 8 एक रूपता को प्राप्त होते हैं। जब सभी एक-भूत हो जाते हैं, उस समय चाहे दुग्ध हो, चाहे अग्नि, चाहे पानी, सभी धर्म आत्मा में ही तो घटित होंगे न । अद्वैत भाव भी खड़ा हो जाएगा, –ऐसी स्थिति में स्वयं निर्णय कीजिए कि आत्मा का सत्-पना सापेक्ष है या निरपेक्ष ? स्वरूप-संबोधन-परिशीलन / 85 सुधी पाठक - जन ध्यान रखें। यह सम्बोधन - ग्रन्थ अध्यात्म - न्याय से परिपूर्ण है । मैं समझता हूँ कि सामान्य जनों के लिए भाषा कठिन होती जा रही है । "समाधि-तंत्रअनुशीलन" में शुद्ध अध्यात्म है, "स्वरूप- संबोधन - परिशीलन" तर्क-शास्त्र समन्वित अध्यात्म-ग्रन्थ है, आप अभ्यास-रत रहें, समझ में आएगा, - ऐसा मेरा अंतःकरण कहता है। यदि मैं इस विषय को स्पष्ट नहीं कर पाया हूँ, तो समझिए कि सुधी पाठकों को मैंने अधूरा परोसा है। एक बार महान् ग्रंथ पर विश्लेषण हो जाये, यही प्रयोजन है। ग्रंथ के कलेवर को बढ़ाना उद्देश्य नहीं है, अतः पुनः अपने विषय पर आया जाता है कि अर्हदर्शन से बाह्य-मत वाले एकान्तवादी जो पदार्थों के सद्भाव को ही एकान्त से मानते हैं, अभाव को नहीं मानते, उनके मन में प्राग्भाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव और अत्यन्ताभाव आदि चारों प्रकार के अभावों को नहीं मानने से सभी पदार्थ सर्वात्मक, अनादि, अनन्त और अस्वरूपी हो जाएँगे, यानी किसी भी द्रव्य का कोई निश्चित स्वरूप ही नहीं होगा, स्वरूप - अस्तित्व का लोप हो जाएगा, ज्ञानियो! इसलिए ध्यान दो - आत्मा सत्-स्वरूप है, वह मात्र सत् चित् की अपेक्षा से है, न कि जड़ की अपेक्षा | चैतन्य-धर्म की दृष्टि से ही आत्मा सद्-रूप है, न कि अचेतन की अपेक्षा। अचेतन की अपेक्षा से वह असद्-रूप ही है, अतः स्व-चतुष्टय से द्रव्य सद्-रूप है, पर - चतुष्टय की अपेक्षा असद् रूप है। सदेव सर्वं को नेच्छेत् स्वरूपादिचतुष्टयात् । असदेव विपर्यासान्न चेन्न व्यवतिष्ठते । । - आप्तमीमांसा, श्लो. 15 अर्थात् स्वरूपादि चतुष्टय की अपेक्षा से सब पदार्थों को सत् कौन नहीं मानेगा और पर-रूपादि चतुष्टय की अपेक्षा से सब पदार्थों को असत् कौन नहीं मानेगा, यदि ऐसा कोई नहीं मानता, तो वस्तु की सही व्यवस्था नहीं बनेगी । प्रत्येक द्रव्य सद्-असद्-रूप
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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