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________________ 681 स्वरूप-संबोधन-परिशीलन श्लो . : 5 गुणों से शून्य आत्मा कभी नहीं होती। गुणों से आत्मा को सर्वथा शून्य कर देंगे, तब तो आत्मा का ही अभाव हो जाएगा। गुण-रिक्त गुणी नहीं होता, अवस्तुता का प्रसंग आ जाएगा। अतः विभाव से शून्य, स्वभाव से परिपूर्ण, ध्रुव, आत्म-तत्त्व ही परमउपादेय है, -ऐसा समझना चाहिए। आत्मा को अणु-प्रमाण अथवा वट-दाना-प्रमाण कहा है, वह सर्वथा मृषा-भाषण समझना, तत्त्व की ज्ञप्ति के अभाव में ही ऐसा कहा जा सकता है, तत्त्व-ज्ञानी द्वारा नहीं। ___ मनीषियो! आत्मा स्वदेह-प्रमाण है, इसलिए वट-दाना-प्रमाण कथन की हानि हो जाती है। स्याद्वाद् सिद्धान्त में जब आत्मा निगोद-अवस्था में सर्व-जघन्य अवगाहना को प्राप्त होती है, जन्म के तृतीय समय में इस अपेक्षा से अणु-रूप है अथवा वट-दाने-प्रमाण है।।५।। *** विशुद्ध-वचन * जब जल जाते सारे कर्म... तो सामने आ जाता शिवत्व.....। * वस्त्र धवल तन सुन्दर चरण सुन्दर पर आचरण असुन्दर कुटिल अनिर्मल इसलिए वह भक्त नहीं बल्कि बगुला-भगत............। * परीक्षा होती कसौटी पर कसने से सोने की..... साथ बसने से मनुष्य की....।
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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