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________________ ७० शान्तसुधारस ___ इस संसार में मनुष्य का जन्म मिला, पर अनार्यदेश में मिला, वह प्रत्युत अनर्थकारी हो जाता है। वहां उत्पन्न मनुष्य जीव-हिंसा आदि पापाश्रवों में आसक्त होते हैं। उनका मनुष्य-भव माघवती' आदि नरक के मार्ग की ओर जाने वाला हो जाता है। आर्यदेशस्पृशामपि सुकुलजन्मनां, दुर्लभा विविदिषा धर्मतत्त्वे। रतपरिग्रहभयाहारसंज्ञातिभिः, हन्त! मग्नं जगद् दुःस्थितत्वे॥४॥ आर्यदेश की प्राप्ति और श्रेष्ठ कुल में जन्म हो जाने पर भी धर्मतत्त्व के विषय में जानने की इच्छा होना दुर्लभ है! खेद है! यह जगत् काम, परिग्रह, भय और आहारसंज्ञा से पीड़ित होकर दुर्दशा में डूबा हुआ है। विविदिषायामपि श्रवणमतिदुर्लभं, धर्मशास्त्रस्य गुरुसन्निधाने। वितथविकथादितत्तद्रसावेशतो, विविधविक्षेपमलिनेऽवधाने॥५॥ धर्मतत्त्व जानने की इच्छा होने पर भी गुरु के पास धर्मशास्त्र का श्रवण करना अतिदर्लभ होता है, क्योंकि मनुष्य का अवधान (एकाग्रता) मिथ्याविकथा आदि में होने वाले नाना रसों के आवेश से उत्पन्न अनेक चंचलताओं से मलिन हो रहा है। धर्ममाकर्ण्य संबुध्य तत्रोद्यम, कुर्वतो वैरिवर्गोऽन्तरङ्गः। रागरोषश्रमालस्यनिद्रादिको, बाधते निहतसुकृतप्रसङ्गः॥६॥ धर्म को सुनकर और समझकर उसमें उद्यम करने वाले मनुष्य के सामने १. नरक सात माने गए हैं। उनमें 'माघवती' सातवें नरक का नाम है। ठाणं (७/२३२४) में नरकों के सात नाम और गोत्रों का उल्लेख है। नरकों के रत्नप्रभा आदि प्रचलित नाम उन नरकों के गोत्र हैं। नरकों के नाम हैं-१. धर्मा, २. वंशा, ३. शैला, ४. अंजना, ५. रिष्टा, ६. मघा, ७. माघवत। २. वेत्तुमिच्छा।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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