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________________ १२. संकेतिका इस जगत् में दुर्लभ क्या है? यह प्रश्न सदा से पूछा जाता रहा है। जिसने भीतर की गहराइयों में जाकर उसे समाहित करने का प्रयत्न किया, वह सत्य को उपलब्ध हो गया। जो केवल बाहर तक सीमित रहा उसके सामने धन-सम्पदा, ऐश्वर्य और सुख-सामग्री आदि पदार्थजगत् ही दुर्लभ रहा। हमेशा अर्थवत्ता के आधार पर ही वस्तु की दुर्लभता का अंकन होता है। जिसकी जितनी अर्थवत्ता सिद्ध हई उसी को मनुष्य ने महत्त्व दिया और वही इस संसार का मूल्यवान् पदार्थ बना। जीवन का परम ध्येय है बोधि। जिसने बोधि को पा लिया उसने सब कुछ पा लिया। जो इससे वंचित रहा, उसने सब कुछ पाकर भी कुछ नहीं पाया। इस महान् उपलब्धि में शेष सभी उपलब्धियां समा जाती हैं। छोटी-मोटी उपलब्धियों में रहने वाला बड़ी उपलब्धि से वंचित रह जाता है, इसलिए इसका जो प्रयोजन सिद्ध होना चाहिए, हो नहीं पाता। __ बोधि का अर्थ है-जागरण, सम्यगज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना। यह रत्नत्रयी ही श्रेयस् की साधना है। साधना की दृष्टि से सम्यक् दर्शन का स्थान पहला है। उसके पश्चात् होता है सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र। जब तक सम्यग्दृष्टि नहीं होती तब तक न सम्यग्ज्ञान होगा और न सम्यग्चारित्र। साधना-काल में ये तीनों मोक्षमार्ग के साधन होते हैं, किन्तु सिद्धिकाल में ये तीनों स्वभाव या साध्य बन जाते हैं। बोधि का एक अर्थ है-आत्मबोध, मोक्षमार्ग। जो साधन या पथ आत्मोपलब्धि और मोक्षप्राप्ति का हेतु बने वह साधन और पथ भी बोधि है, इसलिए आत्मा को जानना, देखना और आत्मरमण करना बोधि है। भगवान् महावीर ने कहा-'संबोही खलु पेच्च दुल्लहा' (सूयगडो, १/२/१) संबोधि दुर्लभ है, क्योंकि इसकी संप्राप्ति के चार घटक दुर्लभ हैं-मनुष्य-जन्म, श्रुति, श्रद्धा और संयम में पराक्रम। यदि मनुष्य का जन्म भी मिल गया तो श्रुति मिलनी कठिन है। श्रुति मिलने पर श्रद्धा और संयम में पराक्रम होना उत्तरोत्तर
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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