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________________ ११. संकेतिका जहां प्राणी रह रहे हैं, वह क्या और कैसा है ? सहज ही एक जिज्ञासा होती है। समाधान मिलता है, वह लोक है। लोक अलोक के बिना नहीं होता। वह अलोकाकाश से घिरा हुआ है। दूसरे शब्दों में जहां धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव-ये छह द्रव्य होते हैं वह लोक और जहां केवल आकाश ही हो वह अलोक कहलाता है। लोक ससीम है और अलोक असीम। इन दोनों की सीमारेखा क्या है, यह प्रश्न होता है। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय - ये दो द्रव्य अखण्ड आकाश को दो भागों में विभाजित करते हैं। यही लोक की प्राकृतिक सीमा है। जिस आकाश-खण्ड में ये दो द्रव्य व्याप्त हैं वह लोक और शेष आकाश अलोक होता है। जीव और पुद्गल की गति और स्थिति लोक तक ही होती है। अलोक में गति स्थिति का अभाव होता है, क्योंकि वहां गति और स्थिति के माध्यम नहीं हैं। वह लोकपुरुष सुप्रतिष्ठक आकारवाला है। वह नीचे विस्तृत, मध्य में संकरा और ऊपर मृदंगाकार है। जिस प्रकार तीन सिकोरों में से एक सिकोरा उल्टा, उस पर एक सीधा और उस पर फिर एक उल्टा रखने से जो आकार बनता है, वही आकार सुप्रतिष्ठक संस्थान या त्रिशरावसंपुट जैसा होता है । अलोक का आकार बीच में पोल वाले गोले के समान है और वह एकाकार है। उसका कोई विभाग नहीं होता। लोकाकाश तीन विभागों में विभक्त है- ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक । वह लोक चौदह रज्जु लम्बा है। उसमें ऊंचा लोक सात रज्जु से कुछ कम, नीचा लोक सात रज्जु से अधिक और तिरछा लोक अठारह सौ योजन ऊंचा और असंख्य द्वीप - समुद्र परिमाण विस्तृत है। अधोलोक में सातों नरक तथा भवनपति देवों का, मध्यलोक में व्यन्तर तथा ज्योतिष्क देवों का और ऊर्ध्वलोक में छब्बीस वैमानिक देवों का निवास-स्थान है। चारों गति के जीव इस लोक में समाए हुए हैं। इस प्रकार यह लोक विविधताओं की रंगभूमि है। इसमें जीव और
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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