SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २. संकेतिका जीवन एक प्रवाह है। उसका आदि-बिन्दु है-जन्म, चरम-बिन्दु है-जरा, मृत्यु और मध्यवर्ती बिन्दु है-यौवन, रोग, शोक आदि। जीवन का प्रवाह जन्म से प्रारम्भ होता है और मध्यवर्ती बिन्दुओं को छूता हुआ मृत्यु तक पहुंच जाता है। मृत्यु जीवन की अनिवार्य और शाश्वत घटना है। जन्म लेने वाला कोई भी प्राणी इसका अपवाद नहीं रहा। जितने भी व्यक्ति इस संसार में आए, सभी ने मृत्यु का वरण किया। यदि इस जगत् में सबसे बड़ा कोई भय है तो वह है मृत्यु का भय। मनुष्य का अन्तःकरण मृत्यु का नाम सुनते ही भय से कांप उठता है। मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए यदि कोई व्यक्ति वज्रमय घर में घुस जाए, मुंह में तिनका रखकर किसी की गाय बन जाए, पर्वत के शिखर पर चढ़ जाए तथा समुद्र के उस पार भी चला जाए तब भी यह यमराज किसी को नहीं छोड़ता। संसार का यह कितना बड़ा आश्चर्य है कि प्रतिदिन प्राणी मृत्यु का ग्रास बनते जा रहे हैं और उन्हें देखते हुए भी शेष प्राणी यही सोचते हैं कि वे तो सदा ही जीवित रहेंगे। जब मृत्यु की विभीषिका सिर पर मंडराती है तब छह खण्ड पर शासन करने वाले राजे-महाराजे भी शरण-परित्राण पाने के लिए कातरदृष्टि से दसों दिशाओं में झांकते हैं। बुढ़ापे की काली छाया से जीर्ण-शीर्ण बने हुए बड़े-बड़े अधिकारी दूसरों की सहायता खोजते हैं तथा रोग से आक्रान्त होकर सामन्त और धनाढ्य व्यक्ति भी राहु द्वारा ग्रसित चन्द्रमा की भांति कष्ट का अनुभव करते हुए दूसरों का मुंह ताकते हैं। पर उस समय उनके दुःख को बंटाने वाला, उन्हें शरण और परित्राण देने वाला कोई नहीं होता। व्यक्ति की मूढता है कि वह धन, पदार्थ और परिवार को ही अपना त्राण और शरण मानता चला आ रहा है। वास्तव में सचाई यह है कि वह अपने भीतर ही त्राण और शरण को खोजे। भगवान् महावीर ने कहा 'नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा'। (आयारो २/१७)
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy