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________________ १७४ शान्तसुधारस केवली समुद्घात-समुद्घात की चार परिभाषाएं हैं • सामूहिकरूप से बलपूर्वक आत्मप्रदेशों का शरीर से बाहर निकालना या उनका इधर-उधर प्रक्षेपण करना। • वेदना आदि निमित्तों से आत्मप्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना। • कर्मों की स्थिति और अनुभाग का समीकरण होना। • मूलशरीर को न छोड़कर तैजस और कार्मण शरीर के साथ जीवप्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना। समुद्घात के सात प्रकार हैं वेदनीय, कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय, तैजस, आहारक और केवली। प्रथम छह समुद्घात छद्मस्थ के होते हैं और अन्तिम समुद्घात केवलियों के ही होता है। जब केवली के वेदनीय कर्म अधिक हों और आयुष्य कर्म कम, तब दोनों को समान करने के लिए स्वभावतः आत्मप्रदेश समूचे लोक में फैलते हैं, वह केवली समुद्घात है। उसमें जीव के प्रदेश प्रथम चार समयों में दण्ड, कपाट, मन्थन और अन्तरावगाह (कोणों का स्पर्श) कर सम्पूर्ण लोकाकाश का स्पर्श कर लेते हैं। शेष चार समय में क्रमशः वे आत्मप्रदेश सिमटते हुए पुनः शरीर में अवस्थित हो जाते हैं। यह समुद्घात आयुष्य के अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर होता है। क्षपकश्रेणी-आठवें गुणस्थान से ऊर्ध्वगमन करने वाला जो साधक मोहकर्म को क्षीण करता हुआ आगे बढ़ता है, उसे क्षपक श्रेणी कहते हैं। वह उत्तरोत्तर गति करता हुआ मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। गन्धहस्ती वह हाथी जिसके शरीर से निकलने वाली तीव्र गन्ध अन्यान्य हाथियों को निर्वीर्य कर देती है। गौरव-अभिमान से उत्तप्त चित्त की अवस्था। वह तीन प्रकार का है १. ऋद्धि गौरव-ऐश्वर्य का अभिमान। २. रस गौरव-रस का अभिमान। ३. सात गौरव-सुख-सुविधाओं का अभिमान। चक्रवर्ती-छह खंड का अधिपति और अनेक ऋद्धि-सिद्धियों से सम्पन्न पुरुष चक्रवर्ती कहलाता है। चारित्र धर्म-आचारात्मक धर्म। उसके दस प्रकार हैं-क्षमा, सत्य आदि।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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