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________________ १३६ शान्तसुधारस अर्धघटिका का समय ही अवशेष था। जहाज में माल का लदान किया जा चुका था। अर्हन्नक के साथ जाने वाले अन्य सांयात्रिक भी अपनी तैयारी के साथ आ चुके थे। समुद्रतट पर बसा हुआ चम्पापुर अपनी सुरम्यता और विशालता के कारण जन-जन के लिए आकर्षण-बिन्दु बना हुआ था। अंग जनपद के अधिपति महाराजा चन्द्रछाया इस नगर के अनुशास्ता थे। उसका पड़ोसी देशों के साथ अच्छा व्यापारिक सम्बन्ध था। समुद्रतट पर स्थित होने के कारण चम्पानगर एक सुप्रसिद्ध बन्दरगाह भी था। प्रतिदिन यहां अनेक जलपोत दूसरे देशों से माल लेकर आते और पुनः यहां से माल को भरकर सुदूर देशों में चले जाते थे। इस प्रकार यह नगर माल के आयात-निर्यात का संगमस्थल बना हुआ था। प्रस्थान से पूर्व कुमार अर्हन्त्रक ने एक-एक कर परिवार के सभी सदस्यों को प्रणाम किया और पुनः आकर माता-पिता के चरणों में प्रणत हो गया। माता-पिता ने पुत्र को बांहों से उठाते हुए अपनी छाती से लगा लिया और गद्गद होते हुए अश्रुपूरित नेत्रों से कुमार को विदा दी। श्रमणोपासक अर्हन्नक का जहाज जन-माल को लेकर अपने गन्तव्य की ओर रवाना हुआ। अर्हनक को पहंचाने आने वाले कौटुम्बिकजन तथा अन्य साथी टकटकी लगाए जहाज को देखे जा रहे थे। जहाज अब उनकी आंखों से ओझल हो चुका था। अतीत की स्मृतियां मात्र ही अब उनके लिए शेष बची थीं। अब वे अन्यमनस्कता से पुनः अपने घर लौट रहे थे। वह समुद्री जहाज उस महासिन्धु की छाती को चीरता हुआ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा था। चारों ओर जल ही जल। भूमि का कहीं कोई छोर नहीं दिख रहा था। सर्वत्र जल को देखकर लगता था कि मानो सारा भू-मंडल सिमटकर इस अथाह जलराशि में समा गया है। मन को लुब्ध करने वाली पानी की नीलिमा मानो आंखों को इस प्रकार प्रीणित कर रही थी कि सारी अध्यात्म की गहराई इस महासागर में ही समा गई हो। ऊपर स्वच्छ आकाश तो नीचे पानी की गहराई। एक ओर जलमग्न जलचर पक्षी तो दूसरी ओर कल्लोल करती हुई समुद्र की लहरें। एक ओर जलनिधि का महारव तो दूसरी ओर सनसनाहट करता हुआ पवन-वेग। मौसम बड़ा सुहावना प्रतीत हो रहा था। जहाज में बैठे सभी यात्री इस प्राकृतिक दृश्य को देखकर परस्पर आमोद-प्रमोद कर रहे थे। कोई मन ही मन गुनगुनाए जा रहा था तो कोई मनोरंजक कहानियां सुना रहा था। कोई अपनी सुख-दुःख की बात बता
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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