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________________ १३२ शान्तसुधारस सारा जीवन असभ्य लोगों के बीच बीता हो, सामाजिकता तथा शिष्टाचार का लवलेश जिसे कभी छुआ ही न हो और मारना-काटना ही जिसका दिनप्रतिदिन का धन्धा हो वह व्यक्ति सामाजिक और सभ्य बने, कैसे संभव हो सकता था? ब्राह्मणी ने उससे कुछ अतिरिक्त ही अपेक्षा रखी। वह व्यक्ति को पहचान नहीं सकी और मधुर उपालम्भ देती हुई बोल उठी-अरे! महानुभाव! तुमको इतनी शीघ्रता क्या है? कुछ तो हमारी कुल की मान-मर्यादा का भी ध्यान रखते। बिना निमंत्रित इस प्रकार आना और बैठना क्या तुम्हारी असभ्यता नहीं हैं? भोजन तो तुम्हें मिल ही जाता, फिर एकाकी यहां चले आना तुम्हारी कौन-सी शोभा है? ब्राह्मणी द्वारा कहे हुए वे सहज और सामान्य शब्द भी दृढ़प्रहारी को तीर की भांति चुभ गए। उस चुभन से उसका अन्तःकरण मानो एक साथ ही आन्दोलित, विचलित और व्यथित हो उठा। शब्दों का ईंधन पाकर भीतर ही भीतर छिपा हुआ क्रोध का दावानल सुलग पड़ा। सुप्त अहंकार बोल उठा–अरे! मुझे कहने वाला कौन? एड़ी से चोटी तक एक प्रकार की सिहरन-सी कौंध गई। जीवन में कोई कहने-सुनने वाला भी है, इसका अनुभव उसे आज प्रथम बार ही हो रहा था। अभी तक उसने यही सोचा था कि उसके सामने मुंह खोलने वाला है ही कौन? उसका वह स्वाभिमान आज चूर-चूर होकर स्वयं को ही नीचा दिखा रहा था। प्रतिशोध की चिनगारियां अन्तःकरण में प्रज्वलित हो उठीं। आंखों में लालिमा और चढ़ी हुई भृकुटी उस अपमान को कैसे सहन कर सकती थी? सहसा खून की प्यासी तलवार ने ब्राह्मणी का सिर धड़ से विलग कर दिया। एक करुण चीत्कार बाहरी वातावरण को चीरती हुई वायु में सिमट गई। ब्राह्मण घर के बाहर स्नान कर रहा था। उसने पत्नी की चीत्कार सुनी। चीत्कार सुनते ही वह भीतर की ओर दौड़ा और खून से लथपथ पत्नी का शरीर देख स्तंभित रह गया। वह कुछ भी प्रतिकार करे उससे पूर्व ही दस्युसम्राट ने उसे भी अपनी रक्तप्यासी तलवार से यमलोक पहुंचा दिया। इस करुण दृश्य को देखकर घर के बच्चे रोते-बिलखते अपनी रक्षा के लिए इधर-उधर दौड़ने लगे। इस भगदड़ को देखकर घर के प्रांगण में बंधी हुई गर्भवती गाय चौंक उठी और दोनों सींग उठाकर उस अपरिचित व्यक्ति को मारने दौड़ी। वह खूखार व्यक्ति उस निरीह पशु को भी कैसे छोड़ सकता था? उसने एक ही प्रहार में गर्भस्थ शिशु को बींधते हुए उस गाय को भी मौत के घाट उतार दिया। एक ओर उसके सामने ब्राह्मण और ब्राह्मणी का शव पड़ा था तो दूसरी ओर गाय और उसका तड़पता
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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