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________________ १२८ शान्तसुधारस रहेगा? राजा श्रेणिक मन में किंचिद् अकुलाहट का अनुभव कर रहे थे। ज्यों-ज्यों श्रेणिक प्रश्न पूछते गए, त्यों-त्यों प्रत्येक बार भगवान् नरकवृद्धि की ही उद्घोषणा करते गए। वह उद्घोषणा सातवें नरक तक पहुंच गई। इधर भगवान् महावीर और राजा श्रेणिक के बीच प्रश्नोत्तर चल रहे थे, उधर राजर्षि के कानों में पुनः किसी पथिक द्वारा निःसृत वचन टकराए। उसने कहा–धन्य है आपका श्रामण्य! धन्य है आपका मुनित्व! धन्य हैं आप जैसे राजर्षि! धन्य है आपका त्याग और प्रत्याख्यान! महामुनि कुछ चौंके। मन में साधुत्व का भान हुआ। मन में सोचा–अरे! किसका राज्य और किसका पुत्र? मैं तो उन्हें कभी का ही छोड़ चुका हूं। मैं किससे लड़ रहा हूं? मैं श्रमण हूं, संयत हूं, विरत हूं। मैंने अपने पापकर्मों को प्रतिहत और प्रत्याख्यात कर दिया है। शुभ अध्यवसायों मे प्रतिक्रमण हुआ। उन्होंने आत्मालोचन किया। जो दीप स्नेह के अभाव में बुझने को था वह पुनः श्रमणत्व का स्नेह पाकर अत्यधिक प्रज्वलित हो उठा। अध्यवसाय पुनः विशुद्ध बनने लगे। आर्त्त-रौद्र ध्यान से धर्म और शुक्ल ध्यान में अवस्थित हो गए और पुनः ऊंचाई की ओर बढ़ने लगे। महाराज श्रेणिक अभी भी प्रश्नों से विरत नहीं हो पा रहे थे। उनका मन संदेहों में झूल रहा था। उन्होंने पूछा-भगवन्! पहेली उलझ गई है। यदि राजर्षि अब आयुष्य पूरा करें तो कहां जाएंगे? भगवान् ने कहा-पहले स्वर्ग में। राजा का मन आश्वस्त हुआ। उन्होंने आगे प्रश्न पूछे और भगवान् दूसरे, तीसरे स्वर्ग की उद्घोषणा करते गए। मुनि प्रसन्नचन्द्र ने कुछ ही क्षणों में उस ऊंचाई को पा लिया जहां जाने पर न कोई पतन और न कोई फिसलन। वे गुरुत्वाकर्षण की परिधि से मुक्त हो गए। अन्त में भगवान महावीर ने उद्घोषणा करते हुए कहा-राजन्! राजर्षि केवलज्ञान को उपलब्ध हो गए हैं, सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हो गए हैं। यह सुनकर राजा श्रेणिक को किंचिद् आश्चर्य और प्रसन्नता मिश्रित प्रतिक्रिया हुई। वे समझ नहीं सके कि जो मुनि कुछ समय तक सप्तम नरक की भूमिका का अधिरोहण कर रहे थे पुनः कैसे केवलज्ञान तक पहुंच गए? भगवान् ने उनकी गुत्थी को सुलझाते हुए कहा-श्रेणिक! चढ़ने-उतरने के लिए दो सोपानमार्ग नहीं होते। जिन सीढ़ियों से नीचे उतरा जा सकता है उन्हीं सीढ़ियों से ऊपर भी चढ़ा जा सकता है। तुम्हारे आने के पश्चात् कोई व्यक्ति वहां आया। उसने राजर्षि को बुरा-भला कहा। सहसा वे विचलित हो गए और अपने ही
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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