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________________ शान्तसुधारस ११४ छेद कर अपने आपको वीतराग की परम्परा में अवस्थित कर सकता है। एकाएक थावच्चा पुत्र मां के मुख से समाधान पाकर पुलकित हो उठा। उसका सुप्त मानस अमरत्व के उपाय को जानकार प्रबोधित हो उठा। अब उसकी अन्तर्चेतना आशा की नई किरण से भविष्य की सुखद कल्पनाओं में तैर रही थी। वह महामना भगवान् अरिष्टनेमि की शरण पाने को अधीर, उत्कंठित और प्रतीक्षारत था। एक दिन वह भी स्वर्णिम अवसर आया जब कुमार थावच्चा अर्हत् अरिष्टनेमि के समवसरण में चला गया। कुमार से महाश्रमण बन गया और त्याग तपोबल से अपने-आपको भावित कर साधना के उस सर्वोच्च शिखर तक पहुंच गया, जहां जाने पर न कोई रोग होता है और न कोई शोक, न कोई बड़ा होता है और न कोई छोटा, न जन्म होता है और न मृत्यु। वह सिद्ध - बुद्ध और मुक्त हो गया ।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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