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________________ ९८ शान्तसुधारस श्रीहीरविजयसूरी के दो शिष्य थे। वे दोनों सगे भाई थे, उनके नाम थेवाचक श्रीसोमविजय और वाचक श्रीकीर्तिविजय । ४ 'तत्र च कीर्तिविजयवाचकशिष्योपाध्यायविनयविजयेन । संदृब्धो भावनाप्रबन्धोऽयम्।। शान्तसुधारसनामा, उसमें कीर्तिविजयवाचक के शिष्य उपाध्याय विनयविजय ने शान्तसुधारस नाम का यह भावना-प्रबन्ध गुम्फित किया। ५. शिखिनयन सिन्धुशशिमितवर्षे हर्षेण गंधपुरनगरे । श्रीविजयप्रभसूरिप्रसादतो यत्न एष सफलोऽभूत् ॥ विक्रम संवत् १७२३ गन्धपुर नगर में श्रीविजयप्रभसूरी के प्रसाद से प्रसन्नतापूर्वक यह प्रयत्न सफल हुआ। ६. यथा विधुः षोडशभिः कलाभिः, संपूर्णतामेत्य जगत् पुनीते । ग्रन्थस्तथा षोडशभिः प्रकाशैरयं समग्रैः शिवमातनोतु ।। जिस प्रकार चन्द्रमा सोलह कलाओं के द्वारा सम्पूर्णता को प्राप्त कर जगत् को पवित्र करता है - प्रकाशित करता है उसी प्रकार यह ग्रन्थ समग्र सोलह प्रकाशों से कल्याण का विस्तार करे । ७. यावज्जगत्येष सहस्रभानुः, पीयूषभानुश्च सदोदयेते । तावत्सतामेतदपि प्रमोदं, ज्योतिः स्फुरद्वाङ्मयमातनोतु ।। जब तक जगत् में यह सूर्य और चन्द्रमा सदा उदित रहे, तब तक ज्योति से विलसित यह शान्तसुधारस ग्रन्थ भी सत्पुरुषों के मन में प्रमोद का विस्तार करे । १- २. गीति । ३. उपजाति । ४. इन्द्रवज्रा ।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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