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________________ शान्तसुधारस सकता। कोई व्यक्ति हितकर उपदेश को भी नहीं सुनना चाहता। उसका हृदय परिवर्तन कर उसे समझाना ही तटस्थ व्यक्ति का काम हो सकता है, किन्तु उस पर क्रोध करना, उसके विषय में चिन्ता करना अपने ही सुख का लोप करना है। प्रायः मनुष्य अपने ही राग-द्वेष के कारण अपना मानसिक संतुलन खोता है। दूसरा क्या करता है, इसकी चिन्ता किए बिना मैं क्या करता हूं, इसका चिन्तन होना अति आवश्यक है। इसका एकमात्र अवलम्बन है माध्यस्थ्य अनुप्रेक्षा। भगवान् महावीर ने कहा-'मज्झत्थो णिज्जरापेही' (आयारो, ८/८/५)–जो मध्यस्थ होता है वही वीतरागता की साधना कर सकता है, समता में रमण कर सकता है। जिसने ऐसा अभ्यास किया उसने फलरूप में पाया ० मानसिक शान्ति। ० जीवन की समस्याओं का समाधान। ० अनावश्यक चिन्ता से मुक्ति।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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