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________________ चार्वाक दर्शन एवं जैन दर्शन जिन दर्शनों की हम चर्चा कर आये हैं उनमें चार्वाक दर्शन का नामोल्लेख नहीं है। यह अनात्मवादी दर्शन है। पक्ष के साथ विपक्ष अनिवार्य है। यदि आत्मवाद के साथ अनात्मवादी चार्वाक अस्तित्व में आया हो तो कोई आश्चर्य नहीं। दर्शन शास्त्र की तरह यह भी अति प्राचीन है। बौद्ध धर्म के प्राचीन ग्रन्थों में इसके अंकुर हैं। इससे स्पष्ट है कि बुद्ध से पूर्व भी इसका अस्तित्त्व था। ऋग्वेद की ऋचाओं में भी कुछ उद्धरण मिलते हैं। चार्वाक दर्शन में आत्मा का अस्तित्त्व नहीं। चेतना की उत्पत्ति भौतिक तत्त्वों से होती है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि को मूल तत्त्व माना है। इन चारों की समन्विति से चेतना का आविर्भाव होता है जिसे आत्मा कहते हैं। यहां प्रश्न उठता है, भौतिक तत्त्व जड़ हैं। जड़ से चेतना की निष्पत्ति कैसे संभव है? जिसका स्वभाव ही नहीं, वह उसमें पैदा हो यह विरोधी गुण की उत्पत्ति है। चार्वाक ने प्रश्न को हल करने के लिये कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। जैसे-घी, मधु, मधुर हैं। अमृत तुल्य हैं किन्तु सम मात्रा में दोनों को संयुक्त करने से विष का रूप ले लेते हैं। पान, कत्था, सुपारी, चूना आदि एक साथ चबाने से लाल रंग की उत्पत्ति होती है। अलग-अलग रहने पर रंग का अभाव देखा जाता है। अंगूर और गुड़ में मादकता नहीं, किन्तु विशेष परिस्थिति में मादकता आ जाती है। इसी प्रकार पृथ्वी, जल आदि भूतों की संहति से एक परिस्थिति ऐसी आती है कि उनमें चेतना का आविर्भाव हो जाता है। भूतों के विनाश होने के साथ चेतना का भी विलय हो जाता है। मनुष्य चार तत्त्वों से निर्मित है। बुद्धि भी इन तत्त्वों का परिवर्तित रूप है। सदानन्द ने भौतिकवादियों के चार भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों का उल्लेख किया है। चारों में विवाद का मुख्य विषय है- जीवात्मा सम्बन्धी चिन्तन। शरीरात्मवाद, इन्द्रियात्मवाद, मानसात्मवाद, प्राणात्मवाद-ये अनात्मवाद के फलित हैं। १. शरीरात्मवाद में शरीर ही विशिष्ट तत्त्व है। इसके अलिरिक्त आत्मा नाम __ का कोई तत्त्व नहीं है। .५४ जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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