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________________ न्याय, सांख्य, वैशेषिक, मीमांसक और जैन । ४३ डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने नामान्तर से छह दर्शनों को मान्यता दी है- न्याय, वैशेषिक, सांख्य-योग, पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा । बौद्ध दर्शन की अवधारणा - जैन दृष्टिकोण बौद्ध दर्शन में आत्मवाद का सिद्धांत क्षणिकवाद या अनित्यवाद पर टिका है। क्षणिकवाद को भी कार्य-कारण सिद्धांत, प्रतीत्य समुत्पाद के द्वारा सिद्ध किया है। क्षणिकवाद के अनुसार प्रत्येक वस्तु क्षणिक है। आत्मा के अस्तित्व को वस्तुसत्य नहीं, काल्पनिक संज्ञा मात्र माना है। क्षण-क्षण में विलय और उत्पाद होने वाले विज्ञान एवं रूप का संघात, संसार यात्रा के लिये पर्याप्त है। इनसे परे आत्मा का अस्तित्व नहीं है। बुद्ध ने अपनी चिन्तन प्रणाली के प्रारंभ से ही तत्त्व मीमांसीय प्रश्नों को अव्याकृत घोषित कर दिया। बारह प्रश्नों का समाधान असंभव तथा व्यावहारिक दृष्टि से व्यर्थ समझा। जैसे १. क्या लोक शाश्वत है ?, २. क्या अशाश्वत है ?, ३. क्या लोक सांत है ?, ४ . क्या अनन्त है ? ५. क्या आत्मा शरीर एक हैं ?, ६. क्या आत्मा शरीर से भिन्न है ?, ७. क्या मृत्यु के बाद तथागत का पुनर्जन्म होता है ?, ८. क्या पुनर्जन्म नहीं होता है ?, ९. क्या पुनर्जन्म होना, न होना- दोनों बातें असत्य हैं ?, १०. प्रकृति किस प्रकार स्थित है ?, ११ आत्मा नित्य है या अनित्य ?, १२. ईश्वर है या नहीं ? वच्चागोत के इन प्रश्नों पर बुद्ध मौन रहे। वह अपने स्थान पर लौट गया । आनन्द ने पूछा-प्रभो! आपने वच्चागोत के प्रश्नों का उत्तर क्यों नहीं दिया ? बुद्ध ने कहा- आनंद ! मौन रहने का कारण था । 'आत्मा है' कहने से श्रमण-ब्राह्मणों के सिद्धांत को बल मिलता लोग शाश्वतवादी बन जाते । यदि कहूं कि 'आत्मा नहीं है।' तो उच्छेदवाद का समर्थन होता है। दोनों का निराकरण करने के लिये मौन रहा । बुद्ध मध्यममार्ग के समर्थक रहे हैं। एकान्त शाश्वतवाद या एकांत उच्छेदवाद उन्हें मान्य नहीं था । ये दोनों दो छोर हैं। इसलिये अव्याकृत कहकर अपने को अलग रखा। आत्मा के शाश्वत स्वरूप के विषय में बुद्ध सर्वत्र मौन परिलक्षित होते हैं । ४४ आत्मा को केवल शरीर घटक धातुओं का समुच्चय मात्र माना है। इससे भिन्न आत्मा की कोई परमार्थ सत्ता नहीं है । जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन • ४२
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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