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________________ ण विज्जई' आत्मा के लिये कोई उपमा नहीं जिससे स्वरूप बताया जा सके। सूत्रकार कहते हैं- आत्मा न दीर्घ है, न ह्रस्व है, न वृत्त.है, न त्रिकोण है, न चतुष्कोण है, न परिमंडल है। वह शरीरमान् नहीं, जन्म धर्मा नहीं, लेपयुक्त नहीं, स्त्री नहीं, नपुंसक नहीं। वह ज्ञाता के स्वरूप में अवस्थित है। वह अमूर्त है। सूक्ष्मतम है। वह परिज्ञ है। पदातीत है। इन्द्रियों का विषयभूत जगत् तीन आयामी- ऊंचा, नीचा, तिरछा है। आत्मा सभी आयामों से अतीत है। _ 'परिणे सण्णे'" वह परिज्ञ है, सर्वतः चैतन्य है। साधारण मनुष्य इन्द्रियों के एक भाग से जानता है, किन्तु निरावरण आत्मा सर्वतोभाव से जानता है। 'जे आया से विण्णाया, जे विण्णाया से आया'६ जो आत्मा है वह ज्ञाता है, जो ज्ञाता है वह आत्मा है। जिस साधन से आत्मा जानती है वह ज्ञान आत्मा है। आत्मा द्रव्य है, ज्ञान उसका गुण है। द्रव्य से गुण भिन्न है या अभिन्न ? इस जिज्ञासा का समाधान सूत्रकार के शब्दों में- जो आत्मा है वह विज्ञाता है। इसका आशय, आत्मा ज्ञानशून्य नहीं है। चूर्णिकार का अभिमत भी यही है कि कोई भी आत्मा ज्ञान-विज्ञान से रहित नहीं है। जैसे उष्णता से रहित अग्नि का अस्तित्व नहीं है। भगवती का संवाद इसका साक्ष्य है। गौतम ने पूछा- भंते ? आत्मा जीव है अथवा चैतन्य जीव है ? महावीर-गौतम! आत्मा नियमतः जीव है। चैतन्य भी नियमतः जीव है। जिस साधन से आत्मा जानती है वह ज्ञान भी जीव है। भगवती में लिखा है- आत्मा अनादि-निधन, अविनाशी, अक्षय, ध्रुव, नित्य है। उत्तराध्ययन में-'नो इंदियगेज्झ अमुत्त भावा'। 'नत्थि जीवस्स नासुत्ति' उत्तराध्ययन का सूत्र आत्मा के अमरत्व का सूचक है। जीव का कभी नाश नहीं होता। दशवकालिक नियुक्ति में-'णिच्चो अविणासी सासओजीवो'' आत्मा नित्य, अविनाशी और शाश्वत है। उपनिषदों में आत्मा के प्रतिपादक जो सूत्र हैं, उनका इन सूत्रों से काफी साम्य है। उपनिषद् में ब्रह्मा के आनन्द विज्ञान के विषय में ऐसा ही निरूपण है यतो वाचा निवर्तन्ते, अप्राप्य मनसा सह। आनन्द ब्रह्मणो विद्वान्, न विभेति कदाचन।।१० अर्थात जहां से मन और वाणी उसे पाये बिना ही लौट आते हैं. उस ब्रह्मानंद को जानने वाला पुरुष कभी भय को प्राप्त नहीं होता। - जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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