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________________ फ्रायड ने जिसे जीवन वृत्ति (Eros) और मृत्युवृत्ति (Thenatos) कहा है, कर्टलेविन ने आकर्षण शक्ति (Positive Valence) और विकर्षण शक्ति (Negative valence) के रूप में स्वीकार किया है। इन्द्रियों का विषयों से सम्बन्ध स्थापित होने पर मन में विषयों के प्रति जो अनुकूल-प्रतिकूल भाव बनते हैं उनसे राग-द्वेष का जन्म होता है। इससे स्पष्ट है कि राग-द्वेषात्मक प्रवृत्तियों की उत्पत्ति में इन्द्रियां और मन संपर्क सूत्र हैं। इन्द्रियों की संख्या पांच है- श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रस, स्पर्श। जैन दर्शन में मन को नोइन्द्रिय (Quasi sense organ) कहा है। सांख्य दर्शन में इन्द्रियों की संख्या ग्यारह है, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और एक अन्तःकरण। बौद्ध दर्शन में पांच इन्द्रियां और मन के अतिरिक्त पुरुषत्व, स्त्रीत्व, सुख, दुःख आदि को मिलाकर संख्या बढ़ा देते हैं। जैन दर्शन में द्रव्य इन्द्रिय, भाव इन्द्रिय ऐसे पांच इन्द्रियों के दो-दो प्रकार इन्द्रिय द्रव्येन्द्रिय भावेन्द्रिय उपकरण निवृत्ति (इन्द्रिय रक्षक अंग) (इन्द्रिय अंग) लब्धि (शक्ति ) उपयोग (चेतना) द्रव्येन्द्रिय, इन्द्रियों की बाह्य संरचना (Structural aspect) को कहते हैं। उनका आन्तरिक क्रियात्मक पक्ष (Functional aspect) भावेन्द्रिय है। पांच इन्द्रियों के तेईस विषय दो सौ चालीस विकार हैं। इन्द्रियां अपने विषयों से किस प्रकार सम्बन्ध स्थापित करती हैं? कैसे प्रभावित होती है ? इसका विवरण प्रज्ञापना में देखा जा सकता है। द्रव्य इन्द्रिय का विषयों से संपर्क होता है। वह भाव इन्द्रिय को प्रभावित करती है। भाव इन्द्रिय जीव है अतः जीव बंध जाता है। उपसंहार .२५१.
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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