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________________ १७१-२१२ • लेश्या और पुनर्जन्म • लेश्या और आभामण्डल षष्टम अध्याय विकासवाद : एक आरोहण • काल विभाग के परिप्रेक्ष्य में जैविक विकास • जैन दर्शन में जीव की विकास यात्रा • जैविक विकास • भारतीय परम्परा में मन • पाश्चात्य चिन्तन में मन की अवधारणा • नैतिक विकास • भारतीय दर्शन में नैतिक मान्यताएं • आध्यात्मिक विकास क्रम • चेतना के विकास की विभिन्न अवस्थाएं • मोहनीय कर्म, उसका परिणाम • अन्य परम्पराओं में आध्यात्मिक विकास सप्तम अध्याय मोक्ष का स्वरूप-विमर्श • विभिन्न दार्शनिकों की दृष्टि में मोक्ष की अवधारणा • मोक्ष की परिभाषा • मुक्ति शब्द का अभिप्रेत अर्थ वाच्यता • मुक्ति के पर्याय • जीव के मुक्त होने की प्रक्रिया • मुक्त जीवों का ऊर्ध्वगमन • सिद्ध शिला के पर्याय • सिद्धों के मौलिक गुण • मुक्तात्मा की अवगाहना • मोक्ष और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग • बंधन से मुक्ति की ओर प्रस्थान की प्रक्रिया • मोक्ष प्राप्ति के पूर्व की कुछ विशेष भूमिकाएं 0 उपसंहार 0 सन्दर्भ ग्रन्थ सूची - बीस २१३-२४४ २४५-२५३ २५४-२६०
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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