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________________ १७. ज्ञाता, १।१४।७२। १८. ज्ञाता, १।१।१५६। १६३।१९०। १९. वही, १।१।१८६। २०. वही, १।१३।३२।४३। २१. वही, १।८।१०। २२. वही, १।१६।३१।३२।१२३। २३. व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र २१।२४ उ. ८ सू. १८। २४. वही, सू. १९।२०।२१। २५. (क) ऋग्वेद १०।५७।५), १।१६४१, ३०।३१।३२।३७), (ख) यजुर्वेद ३६।३९। २६. (क) कठोपनिषद १।२।६।, (ख) मुण्डकोपनिषद् १।२।९-१०। (ग) वृह. उ. ६।२।८।, ४।४।३-४। २७. मनुस्मृति १२।४०), १२।५४९। २८. गीता, ८।१५-१६।४।५। २९. द्रव्य संग्रह टीका, गा. ४२। ३०. हीरेन्द्रनाथ दत्त, कर्मवाद और जन्मान्तर पृ. १९६।९९। ३१. परमात्म प्रकाश १७१। ३२. न्याय दर्शन ४।१।१०। ३३. परीक्षामुख, ३५ ३४. भगवती, श. १५ पृ. २३८८।२३९८ ३५. Doctrine of the Jaines पृ. १४१। ३६. वही, पृ. १४१ ३७. वही, पृ. १४१। ३८. वही, पृ. १४१। ३९. न्याय दर्शन २।४।१। ४०. आचारांग अ. उ. सू. २।३। ४१. विज्ञान एवं अध्यात्म प.. ३२।३३। ४२. षड्दर्शन समुच्चय टीका, इक शवनवती कल्पे शक्त्या मे पुरुषोहतः । तेन कर्म विपाकेन पादोविद्धोऽस्मि भिक्षवः। .१६८ जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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