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________________ भक्त-प्रत्याख्यानमरण, बालमरण, बाल तद्भवमरण, गृद्धपृष्ठ मरण, पंडितमरण, पंडितमरण, छद्मस्थमरण, केवलीमरण, वैहायसमरण, इंगिनीमरण, प्रायोपगमनमरण । मूलाराधना में भी कुछ नामान्तर से मरण के १७ प्रकार बतलाये हैं, उनका विस्तार विजयोदया वृत्ति में मिलता है। ठाणं में १४ और निशीथ में २० प्रकार का नामोल्लेख है। संख्या और क्रम में भेद विवक्षा सापेक्ष है। मृत्यु के मूल दो प्रकार हैं - अवीचिमरण एवं प्रायोगिकमरण । शेष सब प्रायोगिकमरण के अन्तर्गत समाहित हो जाते हैं। पंडितमरण ४६ दो प्रकार का है- प्रायोपगमन, भक्त प्रत्याख्यान । प्रायोपगमन४७– चार आहार के त्यागपूर्वक वृक्ष से कटी हुई डाली की तरह स्थिर अवस्था को कहते हैं। भक्त प्रत्याख्यान' ४८ - त्रिविध या चतुर्विध आहार के त्यागपूर्वक मरण का नाम है। उत्तराध्ययन" में, अकाम सकाममरण की भी चर्चा है । बालमरण या अकालमरण दोनों एकार्थक हैं। बाल यानी अज्ञानी । उसका मरण अकाममरण है। सकाममरण, जिसे पंडितमरण भी कहा जाता है। पंडित का अर्थ है, ज्ञानी। पंडितमरण यानी ज्ञानियों की मृत्यु । ज्ञानी स्वेच्छापूर्वक मृत्यु का वरण करते हैं। उनका देहाध्यास नहीं रहता । कुछ लोग ऐसी मिथ्या धारणा को पालते हैं कि समाधि मृत्यु और आत्महत्या दोनों एक ही हैं । कारण उन्होंने समाधि मृत्यु के रहस्य को समझा नहीं । समाधिमरण और आत्महत्या दोनों बाहर में समान प्रतीत होते हुए भी लक्ष्य, उद्देश्य, परिणाम और फल की दृष्टि से बहुत बड़ा अंतर है । आत्महत्या में देह का विनाश होता है। संथारे में सम्बन्ध - - विच्छेद होता है। आत्महत्या दण्डनीय अपराध है। संथारा देहातीत, इन्द्रियातीत अवस्था है। आत्महत्या में आवेश, मोह, असफलता, भय, निराशा, कुण्ठा आदि कारण होते हैं। पंडितमरण की प्रक्रिया इससे भिन्न है। उसमें न आवेश है न मोह आदि। इसलिये दोनों के अंतर को स्पष्ट समझे बिना मिथ्या धारणा निर्मूल नहीं होती। हिन्दू धर्म कोश में डॉ. राजबली पाण्डेय ने मृत्यु के १०१ प्रकारों का उल्लेख किया है। इनमें प्राकृतिक मृत्यु तो एक ही प्रकार की है, अन्य सौ प्रकार की कृत्रिम मृत्यु होती है । जब सप्त धातुओं से निर्मित शरीर में अवस्थित पुनर्जन्म : अवधारणा और आधार १५९०
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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