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________________ अतीन्द्रिय ज्ञान की क्षमता होती है। अतीन्द्रिय ज्ञान में अवधि, मनःपर्यव, जाति-स्मृति आदि हैं । जिसका चित्त इस संदर्भ में केन्द्रित होता है, उसका सारा जीवन खुल जाता है। साधारण मनुष्यों को भी कभी-कभी इस प्रातिभ ज्ञान की स्फुरणा होती है। आधुनिक परामनोवैज्ञानिकों ने इस ज्ञान को “ई. एस. पी." (Extra Sensory Perception) नाम दिया है। आज 'द एज रिग्रेशन' नामक पद्धति का आविष्कार हुआ है। इस पद्धति से रोगी या किसी व्यक्ति को सम्मोहित कर भूतकाल की स्मृतियां दिलाई जाती हैं। अन्तराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त डॉ. अलेक्तजेंडर केनन ने इस पर काफी प्रयोग किये हैं। उस रिपोर्ट में इस पृथ्वी के अतिरिक्त भी जीव-सृष्टि होने का उल्लेख है। केनन का मानना है कि पृथ्वी पर केवल स्थूल देहधारियों का ही अस्तित्व नहीं, सूक्ष्म देहधारी जीवों का निवास भी है। जैन दर्शन में व्यंतर निकाय देवों के अस्तित्व को केनन की धारणा से पुष्टि मिली है। राल्फ सर्ले ने अपनी पुस्तक “पुनर्जन्म की समस्या में पुनर्जन्म के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। डॉ. आगेम ने 'मनोविज्ञान : एक परिचय' में ऐसी घटनाओं का जिक्र किया है जो पुनर्जन्म की गवाही हैं। जन्म के समय बच्चे अपने मुख के आकृति भाव से सुख-दुःख, विषाद आदि को प्रकट करते हैं। यह पूर्वजन्म की स्मृति के फलस्वरूप होते हैं। क्योंकि सद्यजात शिशु में इस जन्म की संवेदनाओं की अनुभूति होने का प्रश्न नहीं उठता। भारतीय चिंतन के अनुसार कर्म पुनर्जन्म का मूल है। अनियंत्रित कषाय ही पुनर्जन्म के मूल को अभिसिंचन देती है- “सिंचति मूलाइं पुणब्भवस्स" यह उत्तराध्ययन का घोष है। आचारांग का सूक्त है- 'माई पमाई पुणरेइ गभं'माया और प्रमाद पुनर्जन्म का हेतु है। आचारांग भाष्य में पूर्वजन्म की स्मृति के कुछ कारणों का निर्देश है- अध्यवसानशुद्धि, ईहापोह मार्गणा। बुद्ध ने कहा- भिक्षुओ! इस जन्म के एकानवे जन्म पूर्व मेरी शक्ति से एक पुरुष की हत्या हुई थी उसी कर्म के कारण मेरा पैर कांटे से विंध गया।४२ सुश्रुत संहिता में कहा है-पूर्वजन्म में शास्त्राभ्यास के द्वारा भावित अन्तःकरण वाले मनुष्य को पूर्वजन्म की स्मृति हो जाती हैपुनर्जन्म : अवधारणा और आधार
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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