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________________ and with unlessened might, inspires another frame with life and light. अर्थात् इस अमर आत्मा का वध करने का सामर्थ्य मृत्यु में नहीं है। जब मृत्यु आत्मा के वर्तमान शरीर का वध करने चलती है तो आत्मा अपनी अक्षुण्ण शक्ति से नया आवास खोज निकालती है. और दूसरे शरीर को जीवन तथा प्रकाश से भर देती है। विचारकों-कवियों की नजर में वाल्ट विटमेन ने अपनी कृति 'सोंग ऑफ माइसेल्फ' में लिखा है-As to you life ? I reckon you are, the leavings of many death, no doubt I had died myself ten thousand times before, अर्थात् ओ जीवन ! तुम मेरे अनेक अवसानों के अवशेष हो। इसमें कोई संदेह नहीं कि मैं इसके पूर्व दस हजार बार मर चुका हूं। अगणित जन्म और मृत्यु के बाद यह वर्तमान, जो भूतकाल की उपज है, प्राप्त हुआ है। पाश्चात्य काव्य साहित्य में पुनर्जन्म सिद्धांत के परिपोषक कुछ संकेत मिलते हैं। मैथ्यु, वर्ड्सवर्थ, आर्नोल्ड, ब्राउनिंग आदि का अभिमत था कि अमर आत्मा का विनाश करने की शक्ति मृत्यु में नहीं है। ऑर्थर शोपनहर ने अपनी पुस्तक 'Parerga and Perlipomega' परेरगा और पार्सपोमेगा में इसकी पुष्टि की है। चेतना की त्रैकालिकता और कर्म पुद्गलों का अनादि संयोग पुनर्जन्म की प्रतीति देता है। मुख्यतः तीन स्रोतों से आस्था परिपक्व बनती है। तीन स्रोत हैं-१. प्रत्यक्षज्ञानी या दार्शनिक, २. तार्किक, ३. वैज्ञानिक। प्रत्यक्षज्ञानियों ने अनुभूत सत्य के रूप में निरूपित किया। जन्म के पहले भी जीवन होता है, और मृत्यु के बाद भी जीवन की धारा अविच्छिन्न है। वर्तमान मध्यवर्ती विराम है। जिसका मध्य है उसका पूर्वापर भाव भी निश्चित है। वर्तमान जीवन जन्म परम्परा की मध्यवर्ती कड़ी यही पुनर्जन्म है। तर्क के स्तर पर प्रारंभ से आज तक पुनर्जन्मवाद की मान्यता यहां पनपी, फली-फूली, वैसे ही इसकी समरेखा में एक धारा और प्रवाहित है जो पुनर्जन्म को स्वीकार नहीं करती। उसे नास्तिक कहते हैं। ये धाराएं दार्शनिक क्षेत्र में अनवरत चलती रही हैं। जो आस्तिक-नास्तिक के नाम से अभिहित की जाती हैं। .१५० - जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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