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________________ ७. अपौद्गलिकता की दृष्टि से व्यक्ति-व्यक्ति के व्यक्तित्व में भी साम्य नहीं है। किसी का आकर्षक होता है, किसी का नहीं। कई दीर्घजीवी हैं, कई अल्पजीवी। यश-अपयश आदि स्थितियां पौद्गलिक उपकरण हैं। आत्मा अपौद्गलिक है इसलिये समान है किन्तु पौद्गलिक विषमता पुनर्जन्म की द्योतक है। कार्य-कारण, जन्य-जनक भाव भी प्रत्यक्ष प्रमाण है। अच्छे-बुरे कर्मों का फलोपभोग न हो तो कर्म की व्यर्थता सिद्ध होगी और कृत प्रणाश दोष भी आयेगा। कोई भी बच्चा जन्म के साथ कर्म नहीं करता किन्तु सुख-दुःख का उपभोग करता है। जन्म से अस्वस्थ, अपंग हो जाता है। ऐसा क्यों ? सहज प्रश्न है। यदि बिना किये कर्मफल मिलता है तो अकृतागम दोष आता है। स्तन्यपान की क्रिया, रोना-हंसना, चलना आदि स्वतः ही करने लग जाता है। पशु-पक्षियों में संतानोत्पत्ति, पालन-पोषण, रहन-सहन की व्यवस्था करने का अनुभव होता है। कहीं प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। जन्मजात संस्कार है। भ्रमर, मधुमक्खी, बया आदि की विशेषताएं स्पष्ट सूचित करती हैं-पुनर्जन्म को। बिल बनाना, मधु तैयार करना, नीड़ की संरचना आदि क्रियाएं उनके पूर्व कर्मजन्य संस्कारों की अभिव्यक्ति है। कर्म से पुनर्जन्म होता है। पुनर्जन्म के बारे में उद्भूत शंका का यह निरसन है। पुनर्जन्म : परकाय प्रवेश भगवती सूत्र में 'पोट्ट परिहार'३४ का उल्लेख है। गौशालक और तिलपुष्प के संदर्भ का संवाद है। महावीर ने कहा-गौशालक ! यह तिल का पौधा फलित होगा। ये सात तिल-पुष्प जीव मरकर इसी पौधे की तिलफली में सात तिल होंगे। वही हुआ। वनस्पतिकाय के जीव भी 'पोट्ट परिहार' का उपभोग करते हैं। गौशालक ने इसी आधार पर सभी जीवों में 'पोट्ट परिहार' का सिद्धांत स्थापित किया। 'पोट्ट परिहार का' अर्थ है-मृत शरीर का अधिग्रहण। वनस्पति के 'पोट्ट परिहार' की संभाव्यता को महावीर ने स्वीकार किया था, अन्य जीवों में भी संभव हो सकता है इसका खण्डन कहीं नहीं मिलता। इस तथ्य के आधार पर हम कह सकते हैं कि वनस्पतिकाय की तरह अन्य जीव-योनियों में भी 'पोट्ट परिहार' संभव है। इस बात की पुष्टि भगवती के ही अगले प्रकरण से होती है। .१४६ जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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