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________________ आदि सबका बीज कर्म शरीर में है । जेनेटिक साइंस के अनुसार व्यक्ति के आकार-प्रकार और संस्कार का आधार 'जीन्स' हैं। पैतृक संस्कारों के संवाहक इस 'जीन' की रचना डी. एन. ए. (Deoxyribo Nucleuic acid) नामक स्कंधों से होती है। प्रत्येक जीन श्रृंखला में ढाई अरब आधार कण के जोड़े होते हैं। व्यक्तित्व निर्माण में ये मूलभूत कारण हैं। इनमें संगृहीत सूचनाओं का आनुमानिक परिमाण पुस्तकारूढ़ किया जाये तो पुस्तक की पृष्ठ संख्या पांच लाख तक पहुंच सकती है। डॉ. स्टेनर ने मनुष्य के भीतर चार शरीरों का निवास माना हैफिजिकल बॉडी, एथरिक बॉडी, एस्ट्रल बॉडी और ईगो । फिजिकल बॉडी को मृत्यु के बाद सूक्ष्म शरीर और ईगो छोड़कर चले जाते हैं। एथरिक बॉडी के विलीनीकरण में तीन दिन लगते हैं। जीव की सात स्थितियां भी बतलाई हैं- १८ फिजिकल बोडी इथर बोडी एस्ट्रल बोडी मेन्टल बोडी स्प्रिच्युअल बोडी कॉस्मिक बोडी वोडीस बोडी भौतिक शरीर कारण शरीर सूक्ष्म शरीर मानसिक शरीर चेतन शरीर दिव्य शरीर जीवन मुक्त Physical body Etheric body Astral body Mental body Spiritual body Cosmic body Bodyless body परामनोविज्ञान में 'सूक्ष्म शरीर न्युत्रिलोन कणों से निर्मित है। ये कण ऐसे हैं जिनमें भार नहीं है। विद्युत आवेश नहीं है। प्रस्फुटन नहीं है। इस आधार पर वैज्ञानिकों ने उन कणों को अभौतिक माना है । न्युत्रिलोन कण कोरे कण के रूप में नहीं देखे जाते। जब दूसरे कणों के साथ संघर्ष होता है तब पकड़ में आते हैं। वे सूक्ष्म परमाणु सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं। सूक्ष्म शरीर के द्वारा विचित्र घटनाएं घटित होती हैं । ' १९ उक्त सात शरीरों के भी अपने-अपने प्रभाव और कार्य हैं। भौतिक शरीर जन्मजात है, इन्द्रियगम्य है। कारण शरीर सूक्ष्म और अदृश्य है। सूक्ष्म शरीर के जागने से तर्क शक्ति, अनुभूति, विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है। परिवेश के अनुसार इसका विकास होता है। कला, सौन्दर्य, विज्ञान, कल्पना, जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन • ८६.
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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