SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोरठा २४. अड़सठ मुनि बेजोड़, एकतीस दो सौ सती। कालू-शरणे छोड़, स्वर्ग सिधाया डालगणि।। २५. ग्यारह अट्ठाईस, बहिर्विहारी मुनि-सती सिंघाड़ा नतशीष, बाकी गुरुकुलवास में।। ढाळः १२. दोहा १. संत मगन तिण अवसरे, पत्र-प्रकार सुजाण । कहै बिराजो पाट पर, भैक्षवगण-नभ-भाण! २. कालू कर काठो करै, भरै नहीं हुंकार । बोलै पहली देखल्यो, गुरु-कर-पत्र निकार।। ३. मगन कहै, हां देखस्यां, आप बिराजो पाट। __ पळपळाट करतो प्रकट, दीखै लेख ललाट।। ४. जन्मस्थली तुम्हारड़ी, स्थली सुघड़-सरदार! तो किण ठामे सीखिया, मारवाड़-मनुहार ।। ५. शिष्य-वर्ग री वीनती, सहसा दिल अवधार। ___ श्री-आसन शोभित करो, शासन-तन-सिणगार! ६. सारा मिल अति आग्रहे, सिंहासन शुभ साज। ___ मुश्किल स्यूं आसित किया, श्री कालू गुरुराज।। ७. मगन मगन-मन तिण समै, तीरथ च्यार समक्ष। श्री डालिम रो लिखित खत', संभळायो निरपक्ष ।। ८. पाट महोत्सव कारणे, निकट मुहूर्त निभाल। श्रेष्ठ प्रोष्ठपद पूर्णिमा, वासर ठव्यो विशाल ।। ६. मोटां रै मारग बहै, वर बेळा बिन मांग। जन्म समै गहि हाथ में, कुण देखै पंचांग ।। १०. भाद्रवि पूनम भावी, भावी-प्रगति-प्रतीक। नियता पूज्य पटोत्सवे, मंगलीक निर्भीक।। १. देखें प. १ सं. २४ २. लय : भूमीश्वर अलवेश्वर कानन फेरै तुषार ६४ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy