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________________ ढाळः ११. दोहा १. श्री डालिम गुरुदेव री, गतिविधि रो वर रूप। अंकन करणो है कठिन, सही-सही तदरूप।। २. सिंहासन स्हाजै यदा, ओढ़ी अंग बनात। रुजाग्रस्त पिण कुण कहै, गद-पीड़ित गुरु-गात।। ३. तन-बल तो तर-तर घटै, त्यूं मन-बल अतिरेक। तन-मन अंतर ओ बड़ो, बूझो करी विवेक।। ४. अब पावस ऋतु पावसी, विकसी है वनराजि। पर्ण मिषे पुहवी मनु, रही कर्ण निज साजि।। ५. भुवन-भार-व्याकुलमना, करण क्लेश रो हास। डालिम-मुख-उपदेशना, श्रवण उद्यता खास ।। 'सुणिए सज्जन! शुभमना। ६. सालम्बन सिंहासने, गुरु श्रमण-समूहे। शिक्षामृत वच बागरे, श्रुति-निष्प्रत्यूहे ।। ७. आयो हाथ चिंतामणि, सुरपादप छायो। कामधेनु मनु कर चढ़ी, भैक्षवगण पायो।। ८. पायो शिव-पल्यंक रो, भवियां मनभायो। शोभायो सौभागियो, जय-स्वाम सवायो।। ६. रहिए स्थिर पद रोपनै, बहिए गुरु-आणां। सहिए मृदु कटु सीखड़ी, सुणो मुनिवर स्याणां ।। १०. प्राणान्ते पिण दृढ़प्रणी, गण-गृह न बिसारै। पवनेरित-च्युत-कुसुम री, गति क्यूं न निहारै।। ११. सावधान अवधान में, जो मुनि-मर्यादा पाळे, ते प्रभुता लहै, नहिं कहणो ज्यादा।। १२. गणि रो जो कर्तव्य है, गण रो पिण जाणो। जुदो-जुदो दरसावियो, जिनशासन-राणो।। १. लय : वीरमती कहै चन्द नै ६२ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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