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________________ ८. तो पिण मन घनश्याम रो, हुयो न चंचल रंच। पूरा प्रेरक रायशशि, श्रावक है सौ-टंच'।। ६. यद्यपि प्रभु-पद भेटसी, रघुनन्दन कविरत्न। किन्तु प्रशंसापात्र है, घन्नू प्रथम प्रयत्न।। १०. बलि सद्गुरु सह इकसठै, चूरू में चउमास। घनश्याम सहयोग स्यूं, वृद्धिंगत अभ्यास।। ११. चन्देरी सरदारसर, पावस वर बीदाण। सद्गुरु वरिवस्या बसै, कालू हित-कल्याण।। १२. 'अभिधान चिंतामणी', हैमकोश पर नाम। कालू कंठस्थित कियो, शब्दकोश अभिराम।। १३. समय उत्तराध्ययन बलि, नन्दी कर कण्ठस्थ। गुरु-सेवा तन-मन-सहित, सारै रही तटस्थ ।। सुगुरु रिझावण सुघड़ाई। लै छोगां-अंगज अंगड़ाई, श्री कालू-कला अपार जी।। १४. बारह बरस हरस सह कालू, डालू-पद अनुषंग जी। परम उमंगे पुण्य प्रसंगे, रहिया रूड़े रंग जी।। १५. जिण-जिण ग्राम नगर पुर विचरै, ले-ले लंबो गेड़ जी। छोगां-अंगज संग रहै ज्यू, पुण्य धरम रै केड़ जी।। १६. 'तद्दिवी तम्मुत्ती' आदिक, आगम-वयण अमोल जी। यथातथ्य चरितार्थ करण-हित, कालू रो दृढ़ कोल जी।। १७. सुगुरु अनुज्ञा रै अनुसार, निज दृष्टी हर बार जी। गुरु अनुरूप विरूप न किंचित, बुद्धि विवेक विचार जी।। १८. लेणो किण स्यूं किण नै देणो के'णो पड़े किंवार जी। बार-बार दृग डार विलोकै, गुरु-इंगित-आकार जी।। १६. एक-एक अक्षर पिण, गुरु-मुख आगल वदै विचार जी। बिगर विमासे गुरु अभ्यासे, भाषै शंख-लबार जी।। २०. गुरु तनु चेष्टा श्रेष्ठा निरखी, परखी अवसर सार जी। बरतै बलि-बलि समय न सोच्यां, बाजै वणिक गिंवार जी।। १. देखें प. १ सं. १८ २. पंडित घनश्यामदासजी पन्नू महाराज के नाम से प्रसिद्ध थे। ३. लय : विनय निभालय निजभवनम् उ.१, ढा.६ / ८५
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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