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________________ १२. कोई कब ही बहतो थारी मीटड़ी नै मार रे। ___ उणनै सहसा बेरुखी स्यूं मैं देतो दुत्कार।। १३. आ इकतारी थारी म्हारी सारी ही विसार रे। कठै क्यूं पधाऱ्या म्हारी हत्तन्त्री का तार।। १४. वज्राहत हूं मर्माहत हूं पीड़ा रो नहिं पार रे। ___मैं ही जाणूं म्हारै मन री या जाणै करतार।। १५. शासणदेवत! आ पिण केवत नहि निवड़ी निस्सार रे। एकपक्खी प्रीतड़ी रो कच्चो कारोबार।। १६. पीऊ-पीऊ करै बो पपीहो पुकार रे। मेहड़लै नै हई न होवै फिकर लिगार।। १७. मोटा मिनख निहारै नाहीं पाछलै रो प्यार रे। मोख जातां वीर छोड्या गोयमजी नै लार।। १८. जाणो सारी बात केणो कोरो है उपचार रे। छूट्यो म्हारो स्हारो सारो आशा रो आसार।। १६. केणै री सुणणै री अब तो नहिं कोइ वेळा-वार रे। इं छलना स्यूं होग्यो म्हारो दिलड़ो डार-डार ।। २०. वापिस दिल बहुड़ायो पूरी पंचमि ढार रे। सतगुरुवां रो विरहो सहणो दुक्कर कार।। ढाळः ६. दोहा १. छठै पट माणक मुनी, माणक सम महकंत। मघवा आसन ऊपरे, भास्वर-भा भलकंत।। सोरठा २. उगणीसै गुणचास, चैत कृष्ण तिथि अष्टमी। पाटोत्सव सुविकास, हुयो शहर सरदार में।। ३. श्रमण इकोत्तर सर्व, श्रमणी शत तेराणवै। है सारां नै गर्व, श्री माणक-नेतृत्व रो।। ७४ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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