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________________ ६. ओछब री छवि छाई, ओपत नोपत ढोल निसाण। गुहिर घुराया जन-मन भाया, मंडाया मंडाण।। ७. गावै गीत सुभागण गोरी, ओरी-दोरी आण। रंग रचावै हर्ष बधावै, पावै चिर कल्याण।। ८. चपल तुरंगे चढिया चंगे, अंगे वसन बखाण। उज्ज्वल रंगे अधिक उमंगे, संगे सकल सुजाण।। ६. भूषण-भूषित' अंग अदूषित, झूसित मनु शुभ झाण। सद्गुण-सदन मदन-मद मूषित, शम-रस-पूषित जाण।। १०. वनितावां की आंकी बांकी झांकी रो अहनाण। नान्हो-सो बेरागी बनड़ो, निरखै करि दृग-काण।। ११. लोक विलोक चकित चित बोलै, देखो बाल-विनाण। इण वय में ओ संयम-मग, जग जाणी जहर समाण।। १२. जोर जुलूस सझायो आयो, दीक्षा-मंडप-ठाण। श्री कालू गुरु-चरणे करणे सर्वपाप-पचखाण।। १३. मासी-दुहिता साथ मात-युत, चरण ग्रह्यो गुणखाण। दिल उत्साह सवायो पायो धुर सप्तम गुणठाण।। १४. निज कर केशलोच कर, हितकर दै गुरुवर सीखाण। सद्गुण-मंडित रहै अखंडित संयम-जीवन प्राण।। १५. नवदीक्षित मुनि आगै कर, गणि आया मूल ठिकाण। लोक कहै सब धन्य-धन्य है, आज शहर बीदाण।। १६. स्वाती नखत सुगुरु-कर-शुक्ती, मुक्ताफल निरमाण। लाखां मानव मस्तक चढ़सी, बढसी प्रतिदिन पाण।। १७. जननी-उदर-खनी स्यूंकढियो, चढियो गुरु-कर शाण। हीरो शासन-मुकुटे मढियो, शोभैला ज्यूं भाण।। १८. शैशव वय में पिण शिशुता री, किंचित नहीं कुबाण। भर जोवन में बो गणवन में, बणसी आगेवाण।। १६. प्रथम ग्रास मघवा-कर मुक्ता पायो ओज असाण। मोती-सी जीवन की ज्योती, खिलसी उज्ज्वल शाण।। २०. चार मास स्यूं गुरु-दीक्षा चारित छेदोवट्ठाण। प्रतिक्रमण रै कारण, पचखायो मघवा महाराण ।। १. देखें प. १ सं. ८ २. देखें प. १ सं. ६ ३. जीतमलजी दूगड़ का नोहरा ४. देखें प. १ सं. १० उ.१, ढा.३/६७
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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