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________________ १०. चोतीसे पति मूलचन्दजी, कालधर्म जब पायो । कालान्तर श्री छोगां सुत-युत, पीहर वास बसायो । । ११. नन्दन रो मुख निरखी जननी, निज मन नै बहलावै । दुखरी घड़ियां आलंबन बिन, बरस बरोबर जावै ।। १२. डूंगरगढ़ में सन्त-सत्यां रो, मिल्यो जोग मनभायो । दुःखित जन विश्राम सन्त जन, आन्तर घाम मिटायो । । १३. माता सुत साझै उपासना, मुनि उपदेश सुणावै । जाणी जग जंजाल बाल-वय, वर वैराग उपावै।। १४. वय साथे वैराग भावना, दिन-दिन बढ़ती जावै । रामत ख्याल विनोद बीच नहिं, चित्त रती ललचावै ।। १५. श्री भैक्षवशासन रा भर्ता, पंचम-पट अधिकारी । मघवा गणिवर स्थिर प्रज्ञाधर, पावन पतित- उधारी ।। १६. वर वदनारविंद री आभा, निरख न नयन अघावै । शारद शान्त शशांक- चन्द्रिका शीतलता सरसावै ।। १७. अनुपमेय संघयण-सौम्यता, बरबस जन-मन खींचे। पाप-ताप-परितप्त हृदय नै, शान्त सुधा स्यूं सींचै । । १८. विहरमाण सरदारशहर इकचालीसे चोमासे । सती गुलाब गुलाब-कुसुम - सी परिमल आसे पासे ।। १६. खबर लही जब ही तब ही, सरदारशहर बहि आया । माता' मासी-सुता'साथ, गुरु निरखी नयन लुभाया ।। २०. विधियुत वंदी गुरु-पद-पंकज, अनिमिष नयन निहारै । गुरु मघवा लख भावी बालक, महर नजर निरधारै ।। २१. दीक्षा-कल्प नहीं तिण वेळां, फिर डूंगरगढ़ आया । चउमासो उत्तरियां गणि पिण, विहरत भवि-मन-भाया ।। २२. मोमासर राजलदेसर हो, रतनगडूढ पड़िहारै । चन्देरी मोच्छब करि गुरुवर, मरुधर देश पधारे । । २३. पुनि-पुनि बारंबार पठाया, छापुर गिरिगढ़ वारू । सन्त - सती- सिंघाड़ा, छोगां - सुत वैराग्य - वधारू । । १. छोगांजी २. कानकंवरजी ३. देखें प. १ सं. ५ उ. १, ढा. २ / ६५
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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