SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौखला उठे। वे 'तेराद्वार' के खण्डन में लिखी एक पुस्तक लेकर आए। उसमें लिखित सिद्धान्त विरुद्ध बात की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया तो उन्होंने आचार्य भिक्षु द्वारा रचित 'नव पदार्थ री जोड़' को गलत ठहराने का प्रयास किया। उस स्थिति में कालूगणी ने जिनवाणी पर आचार्य भिक्षु की आस्था को अभिव्यक्ति देते हुए भगवती सूत्र का प्रमाण प्रस्तुत कर दिया। निरुपाय प्रश्नकर्ता बोला-'यह भगवती आपकी है। मैं किले में जाकर अपना भगवती सूत्र लाऊंगा। उसके बाद वह लौटकर आया ही नहीं। सत्य-झूठ का निर्णय अपने आप हो गया। उक्त प्रसंग की जानकारी पांचवें गीत में उपलब्ध है। ___ मेवाड़ की यात्रा में छोटे-बड़े क्षेत्रों का स्पर्श करते हुए कालूगणी रायपुर पधारे। वहां कुछ प्रतिपक्षी लोग चर्चा करने आए। उन्होंने कुछ प्रश्न उपस्थित किए, जैसे १. गायों के बाड़े में आग लग जाए तो क्या करना ? २. क्या जीवों को बचाने से पाप होता है ? ३. जीव बचाए बिना दया धर्म की रक्षा कैसे होगी ? कालूगणी ने नौका-विहार का सटीक उदाहरण देकर गायों के बाड़े का प्रश्न समाहित किया। शेष दोनों प्रश्न प्रथम प्रश्न के साथ ही जुड़े हुए थे। वहां उपस्थित जनसमूह समाहित हो गया। सामने ही मियां-मौलवी बैठे थे। उनको सम्बोधित कर कालूगणी बोले-'आप नमाज पढ़ते हैं, उस समय अन्य सांसारिक कार्यों से सर्वथा निरपेक्ष रहते हैं। हमने तो साधु जीवन स्वीकार किया है। भगवान का बाना पहनकर हम सांसारिक कार्यों में क्यों उलझेंगे ?' मौलवी साहब ने भी कालूगणी के विचारों के साथ अपनी सहमति प्रकट की। वि.सं. १६७२ में कालूगणी का चातुर्मास उदयपुर था। उस वर्ष वहां मूर्तिपूजक, स्थानकवासी, सनातन और तेरापन्थ, चार सम्प्रदायों के धर्मगुरुओं का प्रवास था। धार्मिक दृष्टि से अभिनव जागरण का वातावरण रहा। साम्प्रदायिक अभिनिवेश धर्म के मंच को भी अखाड़ा बना देते हैं। कालूगणी के युग में अन्तःसाम्प्रदायिक वाद-विवाद बहुत चलते थे। एक दिन कुछ विरोधी श्रावक चर्चा करने के लिए आए। उनका प्रश्न था-आचार्य भिक्षु ने लिखा है कि भगवान महावीर ने लब्धि-प्रयोग करके भूल की। इस मन्तव्य का आधार क्या है ? कालूगणी ने भूल का आधार बताया छद्मस्थता। इस बात पर उन्होंने कहा कि महावीर तो गर्भावस्था में ही केवलज्ञानी थे। वे भूल कैसे कर सकते हैं ? इस पर कालूगणी ने प्रतिप्रश्न किया-'क्या जन्म, विवाह और पुत्री के पिता बने उस समय भी भगवान केवली थे ?' हमने तो उनकी छद्मस्थ अवस्था की भूल कालूयशोविलास-१ / ३३
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy