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________________ मान्यताओं आदि का हवाला देकर जेकोबी को विचलित करने का प्रयास किया । जेकोबी अपने संकल्प पर अटल थे । वे लाडनूं पहुंचे। कालूगणी से मिले । उनका उपदेश सुना। साधुचर्या के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की । साधु-साध्वियों द्वारा निर्मित कलाकृतियों का निरीक्षण किया । जैन आगमों के समालोच्य पाठों के बारे में चर्चा की, दीक्षा महोत्सव देखा, कालूगणी की उपासना कर तेरापंथ की रीति-नीति का परिचय पाया, तीन दिनों के प्रवास में वे अभिभूत-से हो गए । उन्होंने जूनागढ़ पहुंचकर वक्तव्य दिया, उसमें कहा कि वे तीन नई बातें देखकर आए हैं - महावीर - युग के शुद्ध साधु, दम्पति दीक्षा और मच्छं मंसं आदि शब्दों का वास्तविक अर्थ । प्रस्तुत विवेचन प्रथम गीत का प्रतिपाद्य है । उन दिनों जोधपुर की राज्यसभा में नाबालिग दीक्षा को प्रतिबन्धित करने के लिए एक बिल पेश किया गया । उस बिल के सम्बन्ध में जनमत जानने के लिए तीन महीने का समय दिया गया । २१ मार्च १६१४ को मुद्रित जोधपुर के राजपत्र में यह सूचना प्रकाशित हुई है। उसे पढकर तेरापंथ समाज के प्रमुख श्रावक चिन्तित हो गए । वे सब सामूहिक रूप में जोधपुर गए। वहां वे न्यायाधीश से मिले। उन्हें तेरापंथ सम्प्रदाय, उसके अनुशासन, दीक्षा-पद्धति आदि के बारे में विस्तार से बताया। न्यायाधीश महोदय सारी बातें सुनकर गंभीर हो गए। उन्होंने आगन्तुक लोगों को आश्वासन दिया कि जल्दबाजी में ऐसा कोई प्रस्ताव पास नहीं होगा । कुछ दिन बाद ही राजगजट में उस प्रस्ताव को स्थगित करने का संवाद छप गया। श्रावकों ने अनुभव किया कि पूज्य कालूगणी के प्रताप से ही उनको इस कार्य में सफलता मिली है। दूसरे उल्लास के दूसरे गीत में इसका विवेचन है । 1 कालूगणी आचार्य बने । धर्मसंघ की व्यवस्था का पूरा दायित्व संभाला। इसके बावजूद उनका संस्कृत विद्याप्रेम बढ़ता रहा। उन्होंने एक विद्यार्थी की तरह व्याकरण को याद किया और अपना अभ्यास बढ़ाया। उधर मेवाड़ के लोग प्रार्थना करने के लिए आए। उनकी प्रार्थना को ग्रन्थकार ने जो मार्मिक अभिव्यक्ति दी है, उसे पढ़कर पाठक स्वयं मेवाड़ की धरती के पक्ष में खड़ा हो जाता है । कालूगणी ने मेवाड़ की प्रार्थना स्वीकार कर वहां आने की स्वीकृति दे दी । इस पर मातुश्री छोगांजी खड़ी हो गईं। वे बोलीं- 'आप मेवाड़ पधार जाएंगे तो मुझे उपासना का मौका कैसे मिलेगा ?' कालूगणी ने उनको पुनः जल्दी दर्शन देने का आश्वासन दिया । उसके बाद मातुश्री का बीदासर में स्थिरवास हो गया और कालूगणी ने यात्रा का प्रारम्भ कर दिया। यह समग्र वर्णन प्रस्तुत उल्लास के तीसरे गीत में है। कालूयशोविलास - १ / ३१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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