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________________ 'श्रीसंघ' और 'विलायती' का संघर्ष इतना प्रबल हुआ कि पारिवारिक संबंध टूटने लगे, गंदे छापे निकलने लगे और एक दूसरे को अपमानित करने का प्रयास होने लगा। इस सामाजिक संघर्ष में धर्मसंघ को भी उलझाने का प्रयत्न हुआ। पर पूज्य गुरुदेव कालूगणी की दूरदर्शिता एवं तटस्थ नीति ने कोई अवांछनीय कार्य नहीं होने दिया। उस सामाजिक झगड़े में तेरापंथ से द्वेष रखने वाले व्यक्तियों ने तेरापंथ के बढ़ते हुए प्रभाव को कम करने के लिए एक अभियान चलाया। इस अभियान में उन्होंने अन्य संप्रदाय के धर्माचार्य और मुनियों को आमंत्रित किया। आमंत्रण स्वीकृत हुआ। विविध आकांक्षाओं और संभावनाओं में उनका आगमन हुआ। दो साल तक काफी कशमकश का वातावरण रहा। आशा के अनुरूप कार्य न होने से उन्हें पुनः लौट जाना पड़ा। इधर सामाजिक संघर्ष भी धीरे-धीरे मंद होने लगा। मुर्शिदाबाद के जातिबहिष्कृत परिवारों को पुनः समाज में सम्मिलित कर लिया गया। चूरू की पारस्परिक कटुता भी क्षीण होने लगी। उस झगड़े और कटुता को समग्रता से समाप्त करने का श्रेय आचार्यश्री तुलसी को प्राप्त हुआ। वि. सं. १६६६ चूरू चातुर्मास में आश्विन शुक्ला त्रयोदशी को आचार्यश्री की सन्निधि में परस्पर खमतखामणा के साथ उस अवांछनीय अध्याय की समाप्ति हो गई। (विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें 'तेरापंथ का इतिहास' खण्ड १, पृ. ४१७-२६) ८६. मनुष्य को पागल बनाने वाले आठ स्थान एक कवि के शब्दों में काम क्रोध जल आरसी, शिशु त्रिया मद फाग। होत सयाने बावरे, आठ ठोड़ चित लाग।। ८७. आचार्यश्री भिक्षु ने धर्म के क्षेत्र में कुछ नए मानदंड स्थापित किए। धार्मिक और लौकिक कार्यों के मिश्रण को अहितकर बताते हुए उन्होंने एक उदाहरण दिया ___ एक व्यापारी मुख्य रूप से तंबाकू और घी का व्यापार करता था। ग्राहकों के मन में व्यापारी का विश्वास था और व्यापारी ईमानदार था। अच्छा-खासा जमा हुआ काम चलता था। एक दिन व्यापारी को कहीं बाहर जाना था। पीछे से दूकान कौन संभाले? यह प्रसंग चला तो पुत्र ने कहा-'पिताजी! आप हमारा भरोसा नहीं करते हैं। कभी काम संभलाकर देखें तो सही।' ३०० / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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