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________________ के स्वर्गवास तथा लाडनूं में पुनः गुरुदर्शन का वर्णन दूसरे गीत में उपलब्ध है । तीसरे गीत में वि.सं. १६४४ मघवागणी के बीदासर चातुर्मास, कालूगणी को दीक्षा आदेश, दीक्षा से पूर्व सांसारिक महोत्सव, माता और मासी - सुता के साथ संयम रत्न की उपलब्धि, मघवागणी के कर-कमलों से प्रथम ग्रास और चार मास से होनेवाली बड़ी दीक्षा आदि का विवेचन है । चतुर्थ गीत में मघवागणी की बीकानेर यात्रा, उनके सरदारशहर एवं लाडनूं के चातुर्मास, कालूगणी द्वारा संस्कृत भाषा और लिपिकला सीखने का प्रारंभ, मघवागणी की मधुर शिक्षाएं और उनका असीम वात्सल्य, जयपुर यात्रा, रतनगढ़ का चातुर्मास, सरदारशहर का प्रवास, मघवागणी की अस्वस्थता, कालूगणी को व्याख्यान कला का प्रशिक्षण, उनके प्रति प्रवर्धमान विश्वास, युवाचार्य माणक की नियुक्ति और मघवागणी के महाप्रयाण का वर्णन है । पांचवें गीत का प्रारंभ मघवागणी के स्वर्गारोहण के बाद कालूगणी की मनोदशा के भावपूर्ण विश्लेषण के साथ हुआ है। आचार्य श्री तुलसी ने उस स्थिति का ऐसा सजीव चित्र खींचा है कि पाठक स्वयं विरह व्यथा का अनुभव करने लगता है । प्रस्तुत गीत के अग्रिम भाग में माणकगणी के चारवर्षीय शासनकाल की संक्षिप्त झांकी और संघ की भावी व्यवस्था करने से पहले ही उनके महाप्रयाण का वर्णन है । तेरापंथ संघ में एक आचार्य का नेतृत्व है । आचार्य स्वयं अपने उत्तराधिकारी का मनोनयन करते हैं । माणकगणी इस महत्त्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह किए बिना ही दिवंगत हो गए । आचार्य के बिना संघ की क्या स्थिति होती है? उसका संकेत, गुरुकुलवासी साधुओं की जागरूकता, अन्य सम्प्रदायों के लोगों की तीखी प्रतिक्रिया, चातुर्मास के बाद लाडनूं में साधु-साध्वियों का मिलन, अन्तरिम काल में कालूगणी का कर्तृत्व, कालूजी स्वामी का संघ में स्थान, उनके द्वारा साधुओं की सभा में भावी आचार्य की मांग, सन्तों द्वारा उनको यही अनुरोध और कालूजी स्वामी द्वारा डालगणी के नाम की घोषणा का सजीव वर्णन छठे गीत में उपलब्ध है । कच्छ की यात्रा से लौटते समय डालगणी को जोधपुर के आसपास तेरापंथ के नए इतिहास की सूचना मिली । आचार्य पद के लिए अपने नाम की घोषणा उन्हें कुछ अटपटी-सी लगी। उनकी यात्रा की मंजिल थी लाडनूं । वहां पूरा धर्मसंघ उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। वे लाडनूं पहुंचे। माघ कृष्णा द्वितीया को उनका विधिवत आचार्य पद पर आरोहण हुआ। उनके व्यक्तित्व की संक्षिप्त सूचना के साथ बीदासर में उनका प्रथम मर्यादा - महोत्सव, महोत्सव के अवसर पर संघ की सारणा - वारणा के दौरान अन्तरिम काल की जांच-परख, मुनि मगनलालजी के मुख से एक रहस्य २६ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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