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________________ हुआ कुछ पड़ा है। उस अलमारी में देख लो।' आगन्तुक ने अलमारी खोली और मालपुओं से भरा पात्र देख अपने भाग्य की सराहना की। उसने भरपेट मालपुए खाए और ठंडा पानी पिया। खाने के तुरंत बाद उसे ऊंघ आने लगी। मंदिर के बरामदे में खटिया बिछाकर वह सोया तो सोया ही रह गया। उधर सेठानी सुबह होते ही बाबा के हालात जानने के लिए आई। उसने देखा-बाबा मरा नहीं है, वह तो घूम-फिर रहा है। उसका कलेजा बैठ गया। कहीं बाबा को मालपुओं में जहर होने का आभास तो नहीं हो गया? आशंकित मन से वह पूछ बैठी- 'बाबा! आपने हमारे मालपुए नहीं खाए? कितनी भावना से उन्हें तैयार किया था।' बाबाजी बोले-'पुओं का बहुत अच्छा उपयोग हो गया। कल रात कोई भूखा यात्री आया था। तुम्हारे पुए उसे खिला दिए।' सेठानी अधीर होकर बोली-'कौन यात्री था वह?' बाबा ने उत्तर दिया - ‘में तो उसे जानता नहीं। बहुत थका हुआ होगा? उधर देखो। अब तक भी वह सोकर नहीं उठा है।' सेठानी के मन का पाप उसे कचोटने लगा। वह सीधे उस यात्री के पास गई। उसके मुंह का कपड़ा हटाकर देखा-वह तो चिरनिद्रा की गोद में सो चुका था। वह और कोई नहीं, स्वयं उसका पति ही था। सेठानी के मुंह से अनायास ही चीख निकल पड़ी। उसे अपनी करणी का फल मिल चुका था। बाबाजी को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने समूची घटना को थोड़े से शब्दों में बांधकर कहा 'पूआ बणाया चीणी घाली, संतां नै जीमावण चाली। किया अस्त्री खाया भरतार, खाड खणै तो कूवो त्यार।।' जो दूसरे का बुरा करना चाहता है, उसका अपना बुरा तो पहले ही हो जाता है। ७६. मुनिश्री अमीचंदजी के संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा कथित दोहे१. अजब अमीरी में रह्यो, अमीचंद गृहवास। उरग कंचुकी ज्यूं तज्यो, विरगत हृदय विलास।। २. बोल-थोकडां में विबुध, विनयी शासन-दास । सुधी सुघड़ लेखक बण्यो, लेखकला अभ्यास।। ८०. साध्वीश्री छगनांजी के संबंध में आचार्यश्री द्वारा कथित पद्य १. छगनां सति सिंघाड़पती, देवगढ़ चउमास । - तनु कारण जाणी कियो, अनशन अति उल्लास।। २. अंग अरोग हुयो तभी, भारी बण्यो विचार।। दिल दृढ़ता स्यूं सीझियो, दिन सेंतीस निकार।। परिशिष्ट-१ / २६५
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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