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________________ राहगीर ने अपने पैसे वापस मांगे तो बुढ़िया ने कहा-'ये अपने मूंग-चावल ले जा। उसके पास कोई बर्तन तो था नहीं इसलिए अपने अंगोछे में मूंग और चावल डलवा लिए। चावल-मूंग पानी में भिगोए हुए थे, अतः अंगोछे से पानी टपकने लगा। शहर से गुजरते समय लोगों ने पूछा-'राहगीर! तुम्हारे अंगोछे से क्या झर रहा है?' राहगीर बोला-'महाशय! यह मेरी जबान झर रही है। यदि मैं अपनी जीभ से बुरी जबान नहीं बोलता तो मेरी यह हालत नहीं होती।' ७७. 'भ्रमविध्वंसन' तेरापंथ संघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य की कृति है। इसमें तेरापंथ संघ द्वारा मान्य सैद्धान्तिक तथ्यों को आगमों का आधार देकर यौक्तिक ढंग से प्रमाणित किया गया है। इसका आधार स्वामीजी की ३०६ बोलों की हुंडी है। वर्तमान में उपलब्ध पुस्तक ईशरचन्दजी चौपड़ा (गंगाशहर) द्वारा मुद्रित करवाई गई है। इससे पहले एक बार 'भ्रमविध्वंसन' का प्रकाशन हो चुका था, पर वह विधिवत नहीं हुआ। कच्छ (वेला) के श्रावक मूलचन्दजी कोलंबी तपस्वी और आस्थाशील श्रावक थे। एक बार उन्होंने संतों के पास 'भ्रमविध्वंसन' की प्रति देखी। उन्हें ग्रंथ बहुत अच्छा लगा। उनके मन में ग्रंथ को प्रकाशित करने की भावना जगी। उन्होंने संतों से पूछे बिना ही उनके पूठे से वह प्रति निकाल ली और किसी से परामर्श किए बिना ही ८ अक्टूबर १८६७ में उसको छपवा लिया। _ 'भ्रमविध्वंसन' छपकर आया तो उसका स्वरूप देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। जो प्रति मुद्रण के लिए गई थी, वह रफ कापी थी। कहीं उसकी पंक्तियां कटी हुई थीं, कहीं आगे-पीछे लिखी हुई थीं, कहीं छूटे हुए पाठ बाहर हासिए में निकाले हुए थे। मुद्रण करनेवाले ने कुछ छोड़ा, कुछ लिखा और मूल ग्रंथ को एकदम विरूप बना दिया। __वि. सं. १६७६ बीकानेर चातुर्मास में आचार्यश्री कालूगणी के निर्देश से कुछ सन्तों ने पंडित रघुनंदनजी के साथ बैठकर 'भ्रमविध्वंसन' का संपादन किया। इसका संपादन जितना श्रमसाध्य था, ग्रंथ की उपयोगिता उतनी ही बढ़ गई। ७८. सेठ व्यवसाय के लिए देशांतर गया। घर में सेठानी अकेली थी। बाल-बच्चे थे नहीं। मन बहलाने के लिए वह पास-पड़ोस में जाती और समय बिताती। एक-एक कर कई वर्ष बीत गए। सेठ लौट कर नहीं आया। सेठानी उसकी याद में अधीर हो उठी। उसने सेठ को जल्दी लौट आने के लिए कहलवाया। सेठ के संवादवाहक ने आकर बताया कि अभी सेठजी काम में बहुत उलझे हुए हैं, इसलिए आ नहीं सकेंगे। सेठानी का मन आहत हो गया, पर वह कर भी परिशिष्ट-१ / २६३
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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