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________________ थे, पर भीतर नहीं थे। भीतर के खोज वह पहले से ही मिटा चुका था। बहुत खोजने पर भी भैंस नहीं मिली तो मामला पंचों के पास गया। पंच घटनास्थल पर पहुंचे। उन्होंने सारी स्थिति की जानकारी की और 'धीज' कराने का फैसला दिया। ‘धीज' का मतलब है सत्यता का परीक्षण। इस परीक्षण में पंचों ने लोहे के गोले गरम कर संदिग्ध व्यक्ति के हाथों में देने का निश्चय किया। संदेह पड़ोस में रहने वाले उस व्यक्ति पर था। वह व्यक्ति इसके लिए तैयार हो गया। जब उसे बुलाया गया तो वह हाथ में तवा लेकर आया। पंचों ने कहा-'यदि तुमने भैंस नहीं चुराई है तो तवा दूर रख दो और ये गोले हाथों में लो।' यह सुनकर वह बोला-'आप तो सच्चे हैं, फिर यह संडासी का व्यवधान क्यों? आपकी संडासी और मेरा तवा। आपके हाथ तो मेरे भी हाथ।' इस बात पर पंच मौन हो गए। धीज नहीं हुआ। अपराह्न में बंटे (रंधा हुआ गवार) के समय भैंस बोलने लगी। लोगों ने भैंस की आवाज पहचान ली। वे घर में घुसे और भौंहरे में बंधी हुई भैंस को निकाल लाए। ईर्ष्यालु व्यक्ति का षड्यंत्र विफल हो गया। उसे अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी। ६०. नंदू, जुगल आदि का परिवार। नंदू और जुगल दोनों भाई थे। इनमें जुगल के यह संकल्प था कि वह प्रतिवर्ष आचार्यवर के दर्शन करेगा। एक वर्ष पूरा होने की अवधि में दर्शन न कर पाए तो जितने दिन दर्शन न हो, चार आहार का त्याग। कई बार उसके दर्शन वर्ष की संपन्नता पर ही होते थे। उस समय वह उपवास या बेले की तपस्या में होता। जुगल ने यह संकल्प जीवनभर निभाया। ६१. सतरंगी और नवरंगी सामान्यतः तपस्या का सामूहिक प्रयोग है। सतरंगी में तपस्या करने वाले उनपचास व्यक्ति होते हैं। प्रथम दिन सात व्यक्ति सात-सात दिन का उपवास शुरू करते हैं। दूसरे दिन सात व्यक्ति छह-छह दिन का, तीसरे दिन पांच-पांच दिन का, चौथे दिन चार-चार दिन का, पांचवे दिन तीन-तीन दिन का, छठे दिन दो-दो दिन का और सातवें दिन एक-एक दिन का उपवास करते हैं। यह समग्र तप सतरंगी तप कहलाता है। नवरंगी में तपस्या करने वाले इक्यासी व्यक्ति होते हैं। उक्त क्रम से नौ-नौ व्यक्ति क्रमशः नौ से लेकर एक उपवास तक की तपस्या का क्रम पूरे नौ दिनों तक चलाते हैं। इस सामूहिक प्रयोग को कोई व्यक्ति अकेला ही करना चाहे तो उनपचास और इक्यासी व्यक्तियों के बीच होने वाली तपस्या उस एक व्यक्ति को ही करनी परिशिष्ट-१ / २८५
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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