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________________ ४६. इलाहाबाद जाने वाले श्रावकों के नाम पढ़ें निम्नांकित सोरठों में १. जीवण बैंगाणीह, गणेशजी चण्डालिया। गणेश गधियाजीह', राय सुराणा मुदित मन ।। २. विश्रुत साथ वकील, सहज छोगजी चोपड़ा। शासणभक्त सलील, निज कर्तव्य निभाण नै।। १. जीवनमलजी बैंगानी (लाडनूं) २. गणेशदासजी चंडालिया (लाडनूं) ३. गणेशदासजी गधैया (सरदारशहर) ४. रायचंदजी सुराणा (चूरू) ५. छोगमलजी चोपड़ा (गंगाशहर) ५०. गोहिरा प्रायः पीपल के वृक्ष के आसपास रहता है। जिस स्थान पर गोहिरा रहता है, वहां बिजली गिरने की संभावना रहती है, ऐसी जनश्रुति है। उससे गोहिरा तो जलता ही है, उसके साथ पीपल का वृक्ष भी जलकर भस्म हो जाता है। ५१. साध्वीप्रमुखा जेठांजी अस्वस्थता के कारण मेवाड़-यात्रा में साथ नहीं थीं। सं. १६६२ में उनका चतुर्मास सरदारशहर था। उसके बाद उन्होंने राजलदेसर में स्थिरवास किया था। यहां स्थिरवास की दृष्टि से राजाण (राजलदेसर) का उल्लेख ५२. भगवान महावीर ने अपने साधनाकाल में मंखलिपुत्र गोशालक को दीक्षित किया, मुंडित किया, प्रव्रजित किया, शिक्षित किया और तेजोलब्धि प्राप्त करने की प्रक्रिया बताई। गोशालक भगवान के साथ-साथ घूमता। एक दिन उसने वैश्यायन नामक तपस्वी से छेड़छाड़ की। तपस्वी उत्तेजित हुआ। उसने गोशालक को समाप्त करने के लिए उष्ण तेजोलब्धि का प्रयोग किया। भगवान ने सोचा-गोशालक भस्मसात हो जाएगा। गोशालक के प्रति उपजी अनुकम्पा से प्रेरित होकर भगवान ने शीतल तेजोलब्धि का प्रयोग किया। गोशालक बच गया। गोशालक को बचाने के लिए तेजोलब्धि का प्रयोग भगवान महावीर का छद्मस्थ अवस्था में होने वाला प्रमाद था। केवलज्ञान उपलब्ध होने के बाद भगवान ' ने अपने शिष्यों को जो मार्गदर्शन दिया, उसमें लब्धिप्रयोग का निषेध किया है। भगवान के सामने उन्हीं के दो शिष्य-सर्वानुभूति और सुनक्षत्र गोशालक की तेजोलब्धि से जलकर भस्म हो गए। उन्हें बचाने के लिए न तो भगवान ने शीतल तेजोलब्धि का प्रयोग किया और न इन्द्रभूति आदि लब्धिसंपन्न मुनियों २७८ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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