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________________ के स्थान पर ५८ वर्ष की अवस्था में साधु-साध्वियों को समुच्चय के वजन से मुक्त कर दिया। इस अवस्था से पहले बहिर्विहार में प्रत्येक साधु-साध्वी के लिए आधा किलो तक वजन लेने की विधि है। गुरुकुलवासी साधु-साध्वियों पर यह विधि लागू नहीं है। उन्हें अपेक्षा के अनुसार अधिक वजन भी लेना होता है। ३८. कालूगणी ने आचार्य-पद का दायित्व संभालते ही इस बात पर ध्यान दिया कि साधुओं में सिंघाड़े (वर्ग) बहुत कम हैं। इतने कम सिंघाड़ों से सब क्षेत्रों की संभाल नहीं हो सकती। इसी दृष्टि से आपने साधुओं के सात नए सिंघाड़े (वर्ग) तैयार किए। उस समय गुरुकुलवास में बहुत कम मुनि रहे। वर्ग के अग्रगण्य मुनियों के नाम पर प्रकार हैं १. मुनि आनन्दरामजी (श्रीडूंगरगढ़) २. मुनि चुन्नीलालजी (सरदारशहर) ३. मुनि पन्नालालजी (गोगुन्दा) ४. मुनि छगनमलजी (कानोड़) ५. मुनि नथराजजी (गंगापुर) बाद में गण बाहर ६. मुनि सगतमलजी (पुर) बाद में गण बाहर ७. मुनि रंगलालजी (राजाजी का करेड़ा) बाद में गण बाहर कालूगणी की ख्यात में सन्तों के सात सिंघाड़ों का ही उल्लेख है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उस समय साध्वियों के भी तीन नए सिंघाड़े बनाए गए थे। उनके नाम इस प्रकार हैं १. साध्वी जुहारांजी (फलौदी) २. साध्वी छगनांजी (रासीसर) ३. साध्वी केसरजी (रीणी) ३६. कालूगणी द्वारा सर्वप्रथम दीक्षित मुनि पूनमचंदजी के संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा कथित सोरठा... प्रथम शिष्य पुनवान, श्री कालू करुणा घणी। आयू अल्पीयान, निर्मल संयम निर्वह्यो।। ४०. मुनि कस्तूरचन्दजी के संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा कथित पद्य १. वर व्यावचियो जीवन भर मुनि तेजमाल* की सेव करी। ___ भद्र प्रकृति तुलसी हस्ते सिघाड़बंध री ख्यात वरी।। २. स्यामखोर गुरुभक्ता कामल रह्यो निकम्मापण स्यूं दूर। थोड़ो किंयां घणो गुण लेतो कोमल-हृदय संत कस्तूर।। परिशिष्ट-१ / २७१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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