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________________ सौंपकर इस जीवन की यात्रा को संपन्न कर लिया। इस कल्पनातीत आघात को सहने की तैयारी मुनि कालू की नहीं थी। उनका व्यथित होना स्वाभाविक था। फिर भी सोलह वर्षीय किशोर मुनि ने गुरु-वियोग के उन क्षणों में समुद्भूत व्यथा को धैर्य से पी लिया और माणकगणी के संरक्षण में अपने आपको संतुलित कर लिया। मुनि-जीवन के प्रथम पांच वर्षों में मघवागणी की उपासना कर मुनि कालू माणकगणी को उन्हीं की प्रतिछाया समझकर आगे बढ़ने लगे। पांच वर्ष की अवधि संपन्न हो, उससे पहले ही माणकगणी को काल के क्रूर हाथों ने उठा लिया। मुनि-जीवन के एक दशक में इन दो बड़े आघातों ने मुनि कालू को आत्मनिर्भर बना दिया। माणकगणी अपने पीछे संघ को कोई व्यवस्था नहीं दे गए। एक महत्त्वपूर्ण प्रश्नचिह्न को विराम में परिणत करने के लिए धर्मसंघ के सदस्यों ने सर्वसम्मति से डालगणी का नाम प्रस्तावित किया। अनिश्चित भविष्य को एक आलम्बन उपलब्ध हो गया। माणकगणी और डालगणी के अंतरिम काल में मुनि कालू ने जिस सूझबूझ, कर्तव्यनिष्ठा और दक्षता का परिचय दिया, वह तेरापन्थ के इतिहास का एक अविस्मरणीय पृष्ठ है। डालगणी के बाद तेरापंथ संघ के गरिमापूर्ण आचार्य पद का भार संभाला आचार्यश्री कालूगणी ने। कालूगणी का समय तेरापंथ संघ के लिए अभूतपूर्व प्रगति का समय था। उनके नेतृत्व में प्रगति के बहुमुखी आयामों का उद्घाटन हुआ। साधु-साध्वियों की संख्या में वृद्धि, विहार-क्षेत्र का विस्तार, कार्यक्षेत्र का विस्तार, जन-संपर्क का विस्तार, पुस्तक-भंडार की समृद्धि, हस्तकला का विकास, शिक्षा का विकास आदि अनेक बिंदु संघ-सागर में समर्पित होकर व्यापक रूप से अभिव्यक्ति पाने लगे। आचार्यश्री कालूगणी एक यशस्वी, वर्चस्वी और ओजस्वी व्यक्तित्व के आधार थे। उनके प्रभाव और पुण्यवत्ता ने विरोधियों को भी अभिभूत कर लिया। उनके शासनकाल में जो सामाजिक और सांप्रदायिक संघर्ष हुए, उनमें भी उनकी सहनशीलता, दूरदर्शिता तथा शान्तिप्रियता को उन्मुक्तभाव से निखरने का अवकाश मिला। __अपने जीवन के सान्ध्यकाल में कालूगणी अरावली की घाटियों में परिव्रजन करते हुए मालवा पहुंचे। वहां से गंगापुर चातुर्मास हेतु लौटते समय उनके बाएं हाथ की अंगुली में एक छोटा-सा व्रण उभरा। व्रण की जटिलता बढ़ी, पर उसकी प्राणहारी वेदना के क्षणों में भी आप खिलते हुए सुमनों की भांति मुसकराते रहे। कालूयशोविलास-१ / २३
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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