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________________ इस संदर्भ में कवि की निम्नोक्त संवेदना यथार्थ प्रतिभासित हो रही है सिद्ध्यन्ति कर्मसु महत्स्वपि यन्नियोज्याः, संभावना-गुणमवेहि तमीश्वराणां। किं वा भविष्यदरुणस्तमसां विभेत्ता, तं चेत् सहस्रकिरणो धुरि नाकरिष्यत् ।। महान व्यक्तियों द्वारा महत्तर कार्यों में नियुक्त सामान्य व्यक्ति भी सफल हो जाते हैं, वह सारी क्षमता उन विशिष्ट व्यक्तियों की ही होती है। यदि सूर्य अपने सारथि अरुण को आगे नहीं करता तो क्या वह अंधकार को दूर करने में सक्षम हो सकता था? परमाराध्य आचार्यप्रवर के असीम अनुकंपन ने मुझे गति दी और 'कालूयशोविलास' के उत्तरकार्य में संपृक्त होकर मैंने आत्मतोष का अनुभव किया। परिशिष्ट के घटना-प्रसंगों में मेरी जानकारी के परिपूर्ण स्रोत स्वयं आचार्यश्री हैं। कुछ अन्य विरल स्रोतों से भी मैंने अपनी अनभिज्ञता को कम करने का प्रयास किया है। प्रूफ-निरीक्षण आदि कार्यों में अनेक साध्वियों ने पूरी तन्मयता से अपना योग दिया है। उन सबके प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन की औपचारिकता को छोड़कर मैं यह शुभाशंसा करती हूं कि आचार्यप्रवर का कर्तृत्व हम सबको अपने संपर्क में लेकर हमारी कर्मशीलता को निरंतर गतिशील करता रहे। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा सरदारशहर २ सितम्बर, १६७६ कालूयशोविलास-१ / २१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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