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________________ सुत केसरि दुलियो चंपक नाम उचारे, तीजे उल्लासे दीक्षा-व्रत स्वीकारे ।। ५. सिरसा रो केवलचंद, हरख-बोरावड़, हार्दिक विराग जग छोड्यो ऊबड़-खाबड़। मुनि पांचीराम मनसुखां पत्नी साथे, मां-बेट्यां मानां-रायकंवर गुरु हाथे। लिछमां चूरू भाद्रव संवत इक्यासी, बिद पख में बुध, चंपक चंदेरी वासी। सेवाभावी विख्यात ख्यात जग सारे, तीजे उल्लासे दीक्षा-व्रत स्वीकारे ।। दोहा ६. धन चंदन बंधव-युगल, छव मासे गुरु-दीख। पिता-पक्ष धुर राखणे, आ जिनमत री लीक ।। कलश छंद ७. मास कार्तिक सात दीक्षा सुता-मां मोमासरी, जड़ावां मालू मनोरां और संतोकां खरी। सती कमलू सहज संभलू मनोबल उण जंग में, प्रगट दिखलायो रु पायो सुजश सारे संघ में ।। लावणी छंद ८. हरकंवर सुहागण फतेपुरी मिगसर में, माह सुद चवदस सरदारशहर नव विरमे। १. मुनि चंपालालजी (मीठिया) मुनि दुलीचन्दजी को दुलियो कहकर पुकारते थे। २. देखें प. १ सं. १११ ३. आचार्यश्री तुलसी के ज्येष्ठ बंधु सेवाभावी मुनि चंपालालजी ४. देखें प. १ सं. ११२ ५. साध्वी सिरेकवरजी, साध्वी चांदकंवरजी ६. देखें प. १ सं. ११३ उ.३, ढा.१६ / २४३
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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