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________________ सोरठा ३३. पूज्य दियो संकेत, आखिर श्रावक संघ नै। चर्चा करो सचेत, प्रश्न-पडुत्तर रूप में।। ३४. नेमनाथजी सिद्ध, श्रावक पुर-सरदार रा। . चार्चिक प्रवर प्रसिद्ध, पूज्य जवाहिर पे गया।। ३५. पूछ्यो प्रश्न उदार, मिथ्याती री सतक्रिया। श्री जिन-आज्ञा बा'र, अथवा आज्ञा में कहो? ३६. बंध बढावणहार, या है बंध-विमोचणी? भवभ्रमण की धार, वा भवभ्रमण-निवारणी? ३७. अधरम है या धर्म? परिषद में प्रतिवच करो। जैनधर्म रो मर्म, सारी जनता ज्यूं सुणै।। ३८. बड़ी मुसीबत-सी क, टोळाधिप रै सामनै। ___उत्तर अधिकृत ठीक, मुश्किल मिलणो नेमजी! ३६. यदि उत्तर अनुकूल, (तो) निज मत हेत तिलांजलि। पड़े लोक-प्रतिकूल, पारंपरिक जवाब स्यूं।। ४०. सन्मुख पृच्छाकार, परिचित है आछीतरै । उलट-पलट आसार, चलै न 'सिद्धां' सामनै ।। ४१. चर्चा चली न बात, रट समाप्त शास्त्रार्थ री। तेरापथ री ख्यात, बढ़ी दोगुणी-चोगुणी।। म्हारा पूज्य परम गुरु! प्यारा लागो जी। ४२. श्रमण सत्यां नै विचराया देश-प्रदेश में, प्रतिपख-विवरण रो सम्पूरण अध्याय। ढाळ बारमी आ तीजे उल्लासे कही, 'तुलसी' भिक्षुशासण री बढ़ती दाय।। १. देखें प. १ सं. १०२ २. लय : चंदन चोक्यां में सरस बखाण २३० / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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