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________________ दान दया री रेस दिखाई छाण, हुलसाई जनता नागरी जी, म्हारा राज।। १७. कोठारीजी' आया चरचा काज, जो प्रेरक है प्रतिपक्ष रा जी, म्हारा राज। प्रश्न चलावै प्रभु चूकां रो प्राज, प्रत्युत्तर अक्षर-अक्षरां जी, म्हारा राज।। २मनिपरी मीठी वाणी। हां, मनिपरी मीठी वाणी, वरण-वरण में अमिय झराणी। धन्य भाग्य निज मान, पान कीन्ही भवि-प्राणी रे।। १८. आत्म-पर-उभय अनुकम्पा की चोभंगी ठाणंगे आखी। धुर भंगे छद्मस्थ जिनेश्वर री स्थिति ठाणी रे।। १६. पर अनुकंपा कीन्ही स्वामी, गोशालक-रक्षा रा कामी। वेश्यायण री तेजोलब्धी, बीच हणाणी रे।। २०. सात-आठ पग पाछा सिरकै, नहिं कोइ नियम जिनागम निरखै। बलिचंचा पर बिलख तामली तापस ताणी रे ।। २१. लंघ्यो कल्प स्वल्प तिण वारी, चूक हुवै यूं छद्मस्थां री। भावे भगवन भूल करै नहिं केवलनाणी रे।। २२. तीजै दिन पुनरपि ते आया, तीजे भांगे प्रभु ठहराया। प्रथम भंग जिनकल्प हुवै, यूं बात तणाणी रे।। २३. जिन जिनकल्पे अंतर जाणो, द्वादशविध उपकरण प्रमाणो। राखै मुनि जिनकल्प भाष्य' में स्पष्ट बखाणी रे ।। २४. रचियो चवदै सौ बरसां रो, क्यूं नहिं मानण योग्य विचारो। पूज्य कहै नहिं मान्य समय ज्यूं ग्रन्थ-कहाणी रे।। २५. आगम स्यूं प्रतिकूल पड़े है, भाष्य-चूर्णि कहिं बीच अडै है। बांचण और सुणण में भी कहिं-कहिं असुहाणी रे।। १. चम्पालालजी कोठारी, चूरू २. लय : राम रटलै रे प्राणी ३. ठाणं ४।५५८ ४. देखें प. १ सं. ६६ ५. बृहत्कल्प भाप्य, उ. ३ उ.३, ढा.११ / २२३
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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