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________________ ढाळः ११. दोहा १. उत्तम अवसर सफर-हित, स्वामी लख साक्षात। ___फतेह फतेहपुर में वरण, प्रथम पधाऱ्या नाथ।। २. दर्शनार्थ आवागमन, समन हुओ गुरु-पास। प्रश्नोत्तर रो क्रम चल्यो, प्रतिदिन मिल्यो प्रकाश ।। ३. प्रतिपख बहकावट बले, जो गहरो गतिरोध। नाथ-पदाम्बुज रै निकट, सिमट्यो पा अवबोध ।। ४. च्यार दिवस कृपया स्ववश, कियो निवास सुवास। स्वाम रामगढ़ संचऱ्या, विद्वानां रै वास ।। ५. 'च्यार दिवस आवास कियो गुणराश, श्रावक-गण-प्यास बुझाणनै जी, म्हारा राज। पंडित ब्राह्मण आया गरुवर पास, मन-संशय सकल मिटाणनै जी, म्हारा राज।। ६. दान दयामय! देतां रोको आप, यूं जन-वचने म्है सांभळी जी, म्हारा राज। विप्र जिमायां जाबक जाणो पाप, तो धर्म-हेत कुण-सी गळी जी? म्हारा राज।। चौपई छंद ७. समझो जैनधर्म री धारा, तेरापंथ मान्यता द्वारा। दान दान सब एक नहीं है, लोक शास्त्र री प्रथा रही है।। ८. अभय - ज्ञान - संयम - संधाता', उभय भवां पावै सुखसाता। लौकिक दान लोक अनुमोदै, और बिठावै ऊंचै ओधै।। ६. दानां रो पार्थक्य बताणो, तेरापथ-मंतव्य पिछाणो। १. लय : बधज्यो रे चेजारा थारी बेल २. अभयदान, ज्ञानदान और संयमदान उ.३, ढा.११ / २२१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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