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________________ आचार्यश्री तुलसी सृजन की ऊर्जा के सक्षम केंद्र हैं। आपकी प्रतिभा में कथ्य के नये उन्मेष और नव शिल्पन की कला पुरोगमन कर रही है। आपका अनुभवशिल्प शब्दों की तरंगों पर मीनाकारी करता हुआ परिलक्षित होता है। अपनी कल्पनाशील मनीषा के पारदर्शी वातायन पर आप जिस भाव-बोध से साक्षात्कार करते हैं, उसे सजीव अभिव्यक्ति दे देते हैं। छिटपुट रचना-बिंदुओं का संख्यांकन न किया जाए, तो आपकी सृजन-शृंखला में पहली कड़ी है 'कालूयशोविलास'। इस प्रथम कृति में भी अनुभव-शिल्प को जिस प्रौढ़ता से निखार मिला है, वह विलक्षण है। शब्द-शिल्प को सतर्कतापूर्वक गढ़ने का प्रयास न होने पर भी इसके शब्द-विन्यास में आभिजात्य सौन्दर्य का उभार है। साहित्य जगत् की नयी विधाओं से अनुबंधित न होने पर भी इससे आविर्भूत नव्यता एक पराकाष्ठा तक पहुंच रही है। सूर्य-रश्मियों की भांति उज्जवल और गतिशील इस काव्य-चेतना में एक अनिर्वार आकर्षण है। इस अखण्ड और समग्र अस्तित्व को आकार देने वाले जीवन-वृत्त का सृजन अन्तर्लीनता के दुर्लभ क्षणों में ही संभव है। _ 'कालूयशोविलास' में हर घटना का चित्रण जितना यथार्थ है, उतना ही अभिराम है। इसको पढ़ते समय ऐसा प्रतीत होता है, मानो सब-कुछ साक्षात् घटित हो रहा है। इसके साहित्यिक सौन्दर्य में निमज्जित होने पर ऐसा अनुभव होता है, मानो एक तराशी हुई आवृत प्रतिमा का अनावरण हो रहा है अथवा एक सजीव आकृति शब्दों के आवरण को बेधकर बाहर झांक रही है।
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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