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________________ ४०. म्हारो अंतर-भाव पिछाणी, साझ दियो अनपार। ठेट सुगुरु स्यूं भेंट कराई, ओ भारी उपकार ।। ४१. चरचा पड़िकमणो सीखायो, पायो अमृत प्यार। लहरायो वैराग्य-रूंखड़ो, फळ्यो भाग्य गुलजार।। ४२. सोनेली-बैदां घर ब्याही, भगिनी लाडकुमार। पहिलां स्यं ही रही उमाही, लेवण संजम-भार।। ४३. तिण नामे बड़बंधव मोहन तेड़ाया दे तार। पिण कुण बात करै मोहन स्यूं? आज्ञा कठिन करार ।। ४४. परणीजण परदेश-सिधावण और करण व्यापार। त्याग किया मैं सुगुरु साख स्यूं, खुल्यो अनुज्ञा-द्वार ।। ४५. गुरु-आज्ञा मां-मोहन-आज्ञा, खुश सारो परिवार। सांसारिक ओच्छब-मोच्छब रो, खूब सझ्यो उपचार।। १बंधव बोलै जी रे। ४६. मेंहदी मांडी कर-चरणां में, माता कोड पुरायो जी रे। पो. बिद चौथ रात नै मुझने, कंबल उढ़ा सुलायो रे।। ४७. मोहन भैया मध्य निशा में, बात कहै इक छानी जी रे। रे तुलसी! तू काल सवारै, संयम री मन ठानी रे।। ४८. कठिन काम है साधपणे रो, देश-प्रदेशां माही जी रे। जो नहिं मिलसी अन्न रु पाणी, तो के करसी भाई रे? ४६. सौ रुपियां रो नोट कागजी, एक साथ में लीजे जी रे। पोथी-पानां सागै रहसी, काम पड्यां भांगीजे रे।। ५०. भाईजी री अजब बात सुण, हांसी रुकी न म्हारी जी रे। नोट परिग्रह ही है बंधव! नहिं कल्पै निरधारी रे।। ५१. भगिनी लाडां पासे सूती, पूछ क्यूं आ हांसी जी रे? तब मोहन साश्चर्य स्व मुख स्यूं सारी बात प्रकाशी रे।। म्हारै गुरुवर रो मुखड़ो है खिलतो फूल गुलाब-सो। १. लय : सयणा थइये जी रे २. लय : बायो गुलाबशाही केवड़ो उ.३, ढा.३ / १६१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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