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________________ ११. रीछेड़-निवासी भागचन्द पो. सुद में, पाली में दीक्षा च्यार सहज सुधबुध में। बीदाण-वास गुरु-चरण गुमान गह्यो है, नथमल-बागोरी भारी कष्ट सह्यो है। पन्नां भीखां बीदाणै री मां-बेट्यां, तनसुख-सुखदेवां' लफरा सकल समेट्यां। वैशाख शुक्ल बालोत्तर ध्रुवपद चारी, दूजे उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। १२. जीवण जसोल, नोरंग फूल जोधाणै, है तिहोत्तरै तीनूं दीक्षा शुभ टाणै। पटुगढ़ फागण में रामचन्द्र लिछमांजी, बंधव-भगिनी दे दी जीवन की बाजी। बिद चेत बिदाणे संयम सती प्रतापां, चोमास चिहोत्तर में भव-बंधन कापां। हीरो शिशु-सोहन लिछमां साथै माता, नानूजी उदयपुरी है पाई साता। ताऱ्या श्रीकालू करुणा-दृष्टि निहारी, दूजे उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। आसोज महीने भीनासर तिण वर्षे, पृथ्वी-कर दीक्षित मां-बेट्यां मन हर्षे । गंगा-सति लंचित केश महेश-महर में, नोजां मालू लिछमां सरदारशहर में। पन्नां पत्नी सह हमीर गंगाशहरी, तिण ही पुर जेठ मास गुरु-करुणा गहरी। आकस्मिक पुर-पुर प्रसरी प्लेग बिमारी, दूजे उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। १. देखें प. १ सं. ६६ २. मुनि तनसुखदासजी और सुखदेवांजी संसार-पक्ष में पति-पत्नी थे। ३. साध्वी मूलांजी, साध्वी चांदकंवरजी (भीनासर)। ४. साध्वी मूलांजी और चांदकंवरजी का प्रथम केश-तुंचन साध्वी गंगाजी के द्वारा हुआ। ५. वि. सं. १६७४ कार्तिक मास में ६. वि. सं. १६७४, १६७५ १७० / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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