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________________ ३८. पूज्य-वचन रै प्रवर प्रभावे, सहज शांति सरसावै। जी! ढाळ चवदमी विकथा विगमी, सयण! सुणो समभावै।। ढाळः १५. दोहा १. पंडितजी पभणै तदा, वृत्ती बांचण हेत। ___ मुझनै तुम आण्यो अठै, स्मरण करो संकेत।। २. सकल सरल-चित सांभलो, शासन-ईश समक्ष । ___टीका अर्थ यथार्थ ही, प्रगट हुसी प्रत्यक्ष ।। ३. आगम गाथा-षट्क की, टीका पढ़ी तुरंत। पूज्य पठित परमार्थ ही, सिद्ध हुयो एकत।। ४. सहु साखे आखे सुधी, जुदी न राखै बात। साम्प्रत नहिं भाखै श्रमण, अस्ति नास्ति अवदात।। ५. पिण त्रिकाल री मौन तो, कौन विलोकी अत्र? जो न हुवै दिलखातरी, तो पढ़ देखो पत्र।। ६. क्रुद्ध विरोधी-पक्ष-जन, वचन-युद्ध प्रारब्ध। दूजी बार विचार फिर, अर्थ करो उपलब्ध ।। ७. विज्ञ भणै, अनभिज्ञता जाहिर हुसी निकाम। किस्यो पिष्ट-पेषण बले, नवो नीकलै नाम? ८. अब तो कानीरामजी! छानी रही न लेश। स्वीकारो सद्गुरु-कथित, एकमना अकिलेश ।। ६. जपै जतनमलजी तदा, कोठारी बीकाण। इण चरचा नै छोड़ नै, पूछो दूजी छाण।। १०. स्वामी साहस स्यूं कहै, एक करै स्वीकार। तब ही दूजै प्रश्न रो, वारू रूप विचार ।। ११. कोठारी-इण प्रश्न में, मानो म्हारी हार । अपर प्रश्न पूछा करां, अब तो है अधिकार ? १२. वदै बांठियाजी तदा, मैं नहिं मानूं हार। वर्तमान री मौन पण, मुझनै अस्वीकार।। १६६ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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